Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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आ०प०
पयनो.
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मान, दर्शन सहित मारो पात्मा एक शाश्वतो के, वाकीना मारे बाह्य पदार्थों सर्वे संबंधमात्र स्व. रुपवाला छे॥RI
संजोग मूला जीवेण || पत्ता उस्क परंपरा ॥
तम्हा संजोग संबंध ॥ सव्वं तिविहेण वोतिरे ॥७॥ संबंध छे मूल ते जेनुं एवी दुःखनी परंपरा आजीवे मेळवी चे माटे सर्वे संभोग संबंधने मन, वचन ने | कायाए करी वोसिराकुंषु ॥ २७ ॥ ::
मूल गुण उत्तर गुखे ॥ मे नाराहिया पयरोणं॥
तमहं सव्वं निंदे ॥ परिक्कमे आगमिस्साणं ॥ २०॥ प्रयत्नवडे जे मळगुणो अने उत्तरगुणो में न आराध्या ते सर्वने हुँ निर्दछु आवता काळनी निराधनाने पडिमुंछु।२८॥
.. सत्त नए अठ मए ॥ सन्ना चत्तारि गारवे तिनि ।
आसायण तितीस ॥ रागं दोसं च गरिहामि ॥ सात भय, आठ पद, चार संझा, प्रण गारव, तेत्रीश आशातना, राग अने देखने गर। ॥२९॥
असंजम मन्त्राएं | मिचत्तं सम्वमेव य ममत्तं ।।
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