Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 128
________________ कि कि मए न प । संसार-संतरतणे on भा०प० यो दुःख उत्पा पाय वो स्वभाव, पीतेन विजागोजी संसारमा अपना प्रताप कुछ ॥१४॥ ख नयी पाम्यो ॥८॥ संसार चकवाले॥ संबंधिये पुग्गवा मए बहुता। . ...मादारिमाय परिणाममाय में यह गळतर्ति ॥ ॥ ... की में पसीखत संगरबा पालमसकोतापसोपडसालासोमन).it माप्ति पाम्पो नहि ॥४.. Ltitlet तण कोरिकसगी वाजलोवा मकसहस्साह। FI... नश्मो जीवो सको। तप्पेठं कामनोगेहिं ॥५॥ ___ तरवां लाकर करी मेम बानि अने हमाले नदीओ करीब मामु (हात पारतो नवी) IPI तेम कामभोगोए रीके का जोर व पामतोमेसnati माहार मिमिनेणं मागल-मामी पुदीं।" सञ्चित्तो पादारो॥ न खमो मशसावि पथ्ये । SamaARLSHReी ६४॥

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