Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 118
________________ आ०प० ॥५९॥ आ प्रकारे सर्व प्राणी भोना आरंभने, अलिक (असस ) वचनने, सर्व अदत्तादान ( चोरीने), मैथुन अने परिग्रहने पञ्चरूकुंई ॥ १२ ॥ ॥ वेरं मझ न केशइ ॥ • आसान वोतिरित्ताणं ॥ समाहिमणुपालएं ॥ १३ ॥ सम्मं मे सब नू मारे सर्व प्राणी विषे मित्रपणु छे, कोइनी साथे मारे बेर नथी, सर्व वांच्छाओने त्याग करीने हुं समाधिराखुं ॥ १३ ॥ स चादर विहिं ॥ संनाच गारवे कसाए श्रं ॥ सर्व्वं चैव ममत्तं ॥ चएमि सवं खमावेमि ॥ १४ ॥ सब मकारना आहारने, संज्ञाओने, गारवोने, अने कषायोने अने सर्व ममताने त्याग करुं सर्वने खमायु॑षुं ॥ १४ ॥ हुआ इमंमि समये ॥ नवक्कमो जी विश्रस्स जइ मजा ॥ एयं पञ्चस्काणं ॥ विठला आरादणा होन ॥ १५ ॥ जो मारा जीवितनो उपक्रम ( आउखानो नाश ) आ अवसरमां होय तो आ पचरुखाण अने विस्तावाळी आराधना थाओ ॥ १५ ॥ LAANAAskSisterAt पयनो. ॥ ५९ ॥

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