Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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म०प०
॥ ५३ ॥
अप्रतिबद्ध विहार, ए तनुं जिनभाषित भने विद्वान माणसोए प्रशंसेलु अने महा पुरुषोए सेवेलं जाणीने अप्रतिवद्ध मरण गंगीकार करे ॥ १२७ ॥
जद पचिमंमि काले || पश्चिम तिठयर दिसि मुधारं ॥
पहा निलय परं ॥ नवेमि अनुधं मरणं ॥
१२८ ॥
जेम छेल्ले काळे छेला तिर्थंकर भगवाने उदार उपदेश आप्यो एम निश्चय मार्गवालुं अप्रतिबद्ध मरण अंगीकार करूं ॥ १२८ ॥
बत्तीस मंमियादिं ॥ करू जोगी जोग संगद बलेणं ॥ (तवणेड़ पालेां ॥ १२५ ॥
मिळाय बारस || विहे
नायस
बत्रीस भेदे योग संग्रहवडे संजम व्यापार स्थिर करी, बार भेदे तपरुप स्नेहपानें करी ॥ १२९ ॥ संसार रंगम || धि बल ववसाय बद्ध कन्हान
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हंतूरा मोह मत्रं ॥ हराहि आराहण पमागं ॥ १३० ॥
संसाररूपी रंग भूमिकामां धीरजरुपी बल अने उद्यमरुपी सन्नाह ( बखतर) पहेरी सज्ज थलो एवो मोहरूपी मने हणीने आराधनारुपी जय पताका लेइ ले ।। १३० ।।
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टे
पयनो
उद्यम
५३ ॥

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