Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ भत्त पयन्ना. vertisgarrt 86051401 Site-50-500 -2400 अलियं सयंपि नणियं ॥ विहण बहुआई सस वयणाई॥ पमिन नरयंमिवसू ॥ इोण असञ्चवयरोण ॥ १० ॥ एकवार पण जूटुं वोल्यु थकुं धणा सत्य वचनोनो नाश करछे केमके एक असय वचनवडे वमुराजा नरकने विपे पडयो ॥१०॥ माकुणसुधीर बुद्धिं ॥ अप्पं व बहुं व परधणं घित्तुं ॥ दंतंतर सोहणयं ॥ किलिं च मिपि अविदिन्नं ॥१०॥ हे धीर, थोडं के वधारे पारकुं धन ( जवू के ) दांत खोतरवाने माटे एक सळी मात्र पण अदत्त लेवाने बुद्धि न कर ॥ १०२ ॥ जो पुण अव अवहर॥ तस्स सो जीवियंपि अवहर॥ जं सोयच कएणं । नझइ जीयं न नण अचं ॥१३॥ वली जे पुरुष पैसो हरण करेछे ते तेनुं जीवित पण हरण करेछे जे कारण माटे ते पुरुष पैसाने माटे जीवनो साग करेछे पण पेसाने मेलतो नथी ॥ १.३॥ तो जीवदया परमं ॥ धम्म गहिकरा गिन्द मादिनं ॥ जिण गणहर पमिसिहं॥ लोग विरुई अहम्मं च ॥ १० ॥ antravasans-Seesesee: 9

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154