Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
View full book text
________________
भत्त
॥ १८
रमणी दंसणं चेव ॥ सुंदरं होन संगम सुदेां ॥
मलसं पुरा विलासो ॥ १२१ ॥
. मघोन्विष सुरदोमालाई | स्त्रीनुं दरशन खरेखर हुं छे, माटे संगमना मुखवडे करीने सर्यु; मालानो गंघ पण सुगंधीदार होय पण मर्दनवडे विनाश पामे ॥ १२१ ॥
साकेयपुराहिवइ || देव र र सुस्क पो । पंगुल देनं वढो || ढोय नईइ देवीए ॥ १२२ ॥
साकेत नगरनो अधिपति देवरति नामे राजा राज्यना सुखथी भ्रष्ट थयो, पांगलाने माटे ते नदीमां पडयो अने ते नदीरुप देवीने विषे बुडयो ॥ १२२ ॥
सोय सरी डुरिय दरी ॥ कवम कुमी महिलिया किलेस करी ॥ वयर विशेयण अरणी ॥ उरक खणी सुरकपमिवरका ।। १२३ ।
शोकनी नदी अने दुरितनी गुफा, कपटनुं घर अने क्लेशनी करनारी अने वैररूपी अग्निने सलगाववाने अरणीना लाकडा समान अने दुःखनी खाण अने सुखनी प्रतिपक्षी स्त्री छे ॥ १२३ ॥
अमुलियमा परिक्कम्मो ॥ सम्मं को नाम नासिनं तरइ ॥ म्हसर सरोदे || दिोिमयीं ॥ १२४ ॥
FRETSsestses
पयनो.
॥ १८ ॥

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154