Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak
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पण अपनेणय, पत्नाणिय जेण नर सुर सुदाई॥ ॥३२॥
मुस्कसुदं पुण पत्तेण, नवरि धम्मो स मे सरणं ॥४३॥ जे धर्म पामे छते अने अणपामे पण जेणे माणस अने देवताना मुखाने मेळव्यां, पण मोक्षमस्व तो वळी धर्म पामेलाएज मेळव्युं ते धर्म मारे शरण हो ॥ ४३ ॥
निदलिप कलुस कम्मो, कय सुद जम्मो खलीकय अहम्मो ॥
पमुह परिणाम रम्मो, सरणं मे दोन जिणधम्मो ॥ ४ ॥ ___अतिशे दल्यो छ मलीन कर्म जेणे, कयों छे शुभ जन्म जेणे, दूर कयों के अधम जणे, परि- Pणामे सुंदर एवो जिन धर्म:मने शरण हो ॥ ४४ ॥
कालत्नएविन मयं, जम्मण जरा मरण वादि सय समयं ॥
अमयंव वहुमयं, जिणमयं च सरणं पवनोहं ॥ ४ ॥ त्रण काळमां पण नहि नाश पामेलं, अने जन्म, जरा, मरण अने सेंकडो गम व्याधिन समावनार, अमृतनी पेठे घणाने इष्ट एवा जिन मतने ह शरणरूपे अंगिकार करूंछ ॥ ४५ ॥
पसमिश्र कामप्पमोहं, दिखा दिसुन कलिय विरोई॥ सिव सुह फलय ममोहं, धम्म सरणं पवनोहं ॥ १६ ॥
Hिotstandan
प्रथम अने
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F३२॥

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