Book Title: Murkhshatakam
Author(s): Hiralal Hansraj Shravak
Publisher: Hiralal Hansraj Shravak

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Page 35
________________ 40-4-2014-0525-7041165Nmes अतिशय परिचयवाली अने अतिशय प्रिय एवी वली अनिशय प्रेमवंत एवी पण खीओ रुप मापणोने विषे खरेखर कोण विश्वास करे ॥ ११७ ॥ विसंन्न नितरं पिहु, नवयार परं परूढ पिम्मपि ॥ कय विप्पियं पई कति ॥ निति निदणं दयासान ॥१८॥ अति विश्वासवंत एवा अने उपकारने वि तत्पर एचा ने उत्पन्न थयो छे प्रेम ते जेन एवा पण पतिने एकवार अप्रिय करवाथी तरतज ते अधम खीओ मरण पमाडेछे ॥ ११८ ॥ रमणिय दंसणान ॥'सो मालं गीन गुण निबज्ञान॥ नव मालाइ मालान वहरंति हिययं महिलियान ॥ ११ ॥ मंदर देखाती एवी अने मुकुमार अंगवाली अने गुणथी (दोरीथी) बंधाएली नवी जाइनी माला जेवी स्वीओ पुरुषना हृदयने हरेछे ॥ ११०॥ किंतु महिलाण तासिं ॥ दंसण सुंदर जणिय मोहाणं ॥ आलिंगण मयरा देश ।। बध मालाण वविणासं ॥ १२० ॥ दर्शनना सुंदरपणाथी उत्पन्न कयों के मोह ने जेमने एवी सियोना लिंगनरुप मदिग कणेरनी वध्य मालानी पेठे पुरुषोने विनाम आपछ ॥ १२० ॥ 6052515-2050516PERSESEAR.24242514016PRES:

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