Book Title: Multan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Multan Digambar Jain Samaj

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Page 12
________________ 16 वर्ष पूर्व पडित श्री अजितकुमार जी ने श्री न्यामत राम जी को मृलतान दि० जैन रामाज का इतिहास लिपिबद्ध कराने की अभिलापा व्यक्त की थी। किन्तु उनका अचानक दुर्घटनाग्रस्त होकर देहावसान हो जाने से इतिहास लिखवाने वाली बात उन्ही के साथ समाप्त हो गई। किन्तु कार्य होने का समय निश्चित होता हे और जमा होने का होता है वही होता है उसके निमित्त भी वैसे ही बनते है । कम से कम इस प्रकरण मे तो ऐसा ही हुआ । अनायास ही कुछ समय पूर्व दिल्ली मे श्री गुमानीचन्द जी से मेरी बात हुई कि एक ऐसी पुस्तक प्रकाशित कराई जाय जिसमे हमारी समाज में प्रचलित पद्धति से पजायें, स्तोत्र पूर्वजो से चले आ रहे भक्ति, अध्यात्म, उपदेशात्मक प्राचीन गीतो का क्रमबद्ध सकलन हो तथा कुछ अपना इतिहास भी लिखा जाय जिससे भविष्य मे समाज पूर्व परम्परागत धर्म साधन कर सके अथा पूर्वजो के विषय में जानकारी प्राप्त कर सके । इस योजना को उपयोगी जानकर इसे मूर्तरूप देने के लिए वहा समाज के कुछ विशिष्ट महानुभावो से सम्पर्क किया गया । आर्थिक सहायता उपलब्ध होने के आश्वासन स्वरूप इस कार्य का शुभारम्भ हुआ । जयपूर आकर जव श्री न्यामतराम जी को इसकी जानकारी दी तो वे आनन्द विभोर हो गये और कहा कि मेरा दीर्घकालीन स्वप्न साकार हुआ तथा उन्होने पडित श्री अजितकुमार जो की बात दोहराई, समाज की कार्यकारिणी की बैठक आयोजित कर वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया जिस पर प्राय सभी ने प्रसन्नता प्रकट की तथा परिवार परिचय प्रकाशन के रूप मे धन राशि की प्राप्ति हेतु प्रस्ताव की भी स्वीकृति प्रदान कर अनुमोदित किया । श्री न्यामतराम जी के साथ पुस्तक प्रकाशन की रूपरेखा तैयार किए जाने के सम्बन्ध में जब श्रीमान् डा० हुकुमचन्द भारिल्ल से मिले तो उन्होने पूजन आदि की पुस्तक नित्य उपयोग मे लिए जाने की दृष्टि से इतिहास की पुस्तक का पृथक प्रकाशन कराये जाने का परामर्श दिया । इतिहास के लिए समाज-सेवी डा० कस्तूरचन्द जी कासलीवाल से सम्पर्क स्थापित किया गया तथा उनसे इतिहास लेखन का कार्य करने की प्रार्थना की गई जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार कर हमे कृतार्थ कर दिया जिसके लिए समस्त समाज उनका आभारी रहेगा । डा० कासलीवाल जी ने निरन्तर आदर्शनगर मन्दिर आकर वहाँ रखी हस्तलिखित पाण्डुलिपियो नथा मूर्तियो के प्रशस्ति लेखो से अभीष्ट सामग्री एकत्रित करने मे जो अथक परिश्रम किया उसके लिए मुलतान दि० जैन समाज सदैव ऋणी रहेगा । मलतान दि० जैन समाज को आशीर्वाद रूप गुरुजनो, विद्वानो एव श्रीमानो ने शभ सदेश एव लेख भेजकर जो उपकृत किया है, समाज सदैव उनका आभारी रहेगा।

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