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आचार्यने भी बनाई है और पहली आचारवृत्ति संस्कृतटीकाके अनुसार जैपुरी देशभाषा टीका पं० नंदलालजी जैपुरनिवासीने आधी ५१६ गाथा तक बनाई उसके बाद उक्त पंडितजीका खर्गवास होगया । पश्चात् पं० ऋषभदासजीने अवशिष्ट आधी वनाके उसटीकाको पूर्ण किया। उसकेविषयमें "टीका देशभाषामय प्रारंभी सु नंदलाल पूरण करी ऋषभदास यह निरधार है" ऐसा भाषाकारका कवित्तभी है। जैनमतमें मोक्ष मुनिधर्मसे ही है इसलिये मोक्षकेलिये यही ग्रंथ साक्षात् उपयोगी होसकेगा । यह भाषाटीका उक्त भाषाटीकाके अनुसार ही की गई है । अब हम विशेष न लिखकर केवल इतना ही कहते हैं कि इस ग्रंथमाला
के संरक्षक श्रीमान् सेठ सुखानंदजीने जो इस ग्रंथका उद्धार कराया है उसके लिये कोटिशः धन्यवाद है और आशा करते हैं कि उक्त सेठ साहब इसके फंडके वढाने में अपनी उदारताका परिचय देते रहेंगे। _
अंतमें प्रार्थना है कि इस ग्रंथके संपादन व संशोधन करने में जो त्रुटियां रहगई हों उनको खाध्यायप्रेमी सज्जनगण शुद्धकर मेरे ऊपर क्षमा करते हुए स्वाध्याय करें । इत्यलं विज्ञेषु । जैनग्रंथउद्धारककार्यालय } जिनवाणीका सेवक खत्तरगली हौदावाड़ी .!
पं. मनोहरलाल पो. गिरगांव-बंबई कार्तिकवदि १४ सं० १९७६ पाढम (मैनपुरी) निवासी