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प्रस्तावना
आज मैं प्रिय विज्ञ पाठकोंके सामने मुनिधर्मका महान् ग्रंथ श्रीमूलाचार संस्कृतछाया और हिंदीभाषाटीकासहित उपस्थित करता हूं। इसमें मुनिधर्मकी सबक्रियायें बहुत विस्तारसे वर्णन की गई हैं । इसमें बारह अधिकार हैं
मूलगुणाधिकार, बृहत्प्रत्याख्यानसंस्तरस्तवाधिकार, संक्षेपप्रत्याख्यानाधिकार, समाचाराधिकार, पंचाचाराधिकार, पिंडशुद्धिअधि. कार, षडावश्यकाधिकार, द्वादशानुप्रेक्षाधिकार, अनगारभावनाधिकार, समयसाराधिकार, शीलगुणाधिकार, पर्याप्तिअधिकार । इन अधिकारोंका जैसा नाम है उसीके अनुसार कथन किया गया है।
अबतक मुनिधर्मका कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ था इस कारण बहुतसे भव्यजीवोंको मुनिधर्मकी क्रियाओंके स्वरूपका ज्ञान ही नहीं था । अब भाग्योदयसे मुनिअनंतकीर्ति दि० जैन ग्रंथमालाने भव्य जीवोंके उपकारार्थ इस महान् ग्रंथको प्रकाशित किया है । इस महान ग्रंथके मूलकर्ता श्रीवट्टकेरखामी हैं । इस ग्रंथकी संस्कृतटीका आचारवृत्तिके कर्ता श्रीवसुनंदिसिद्धांतचक्रवर्ती हैं । दूसरी मूलाचार प्रदीपक संस्कृतटीका श्रीसकलकीर्ति