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होकर लाठियों से मारा, बल्कि पीछे हाथ बांधकर नंगे बदन तपती धूप में सूरज की ओर मुंह किये घण्टों-घण्टों खड़े रखा। समूचे दिन इस प्रकार गांव के जनबच्चों को मिलिटरी पुलिस ने संत्रस्त किया।"
अचानक माणिक बॅरा को लगा जैसे धनपुर की गरदन कुछ और तन उठी हो। धनपुर कह रहा था :
"लेकिन सब कुछ करके भी किसी से कुछ कहला न सकी पुलिस । इतना अत्याचार इस प्रदेश में पहले कभी नहीं हुआ था। बर्मी आक्रमण के समय भी नहीं, फूलगुड़ी काण्ड में भी नहीं । ये पशु सभी से बढ़कर निकले । दूसरे दिन वहाँ जाने पर सुना कि ऊपर से समूचे गाँव से दण्ड वसूला गया । घर-घर कुर्की पड़ी; ज़ब्तियों का कोई अन्त न था।"
धनपुर की आवाज़ सैंध आयी थी। जैसे गला दबाया जाता हो ! "क्या हुआ ?" माणिक बॅरा ने पूछा ।
माणिक की देह पर सफ़ेद सूती चादर थी और खद्दर का सफ़ेद कुरता। सिर पर बालों का छोटा-सा चूड़ा। धनपुर से पुलिस के अत्याचारों की कथा सुनतेसुनते वह स्वयं आतंकित और रोमांचित हो उठा था। इसलिए उसे बुझते देर न लगी कि धनपुर का कण्ठ क्यों रूंध आया। पर उत्सुकता पूरी कथा सुनने को भी थी। ___ कम विचलित भिभिराम भी न था। भीतर से भीग आया था । कष्ट-कथा अपने में ही कष्टप्रद होती है : न कहते बनती है न सुनते । बस जी को झंझोड़ डालती है।
कुछ सेकण्ड एक पीड़ित मौन छाया रहा । धनपुर आगे बताने लगा :
"उसके बाद कॅली दीदी एक सँकरी-सी पगडण्डी के रास्ते निकलकर एक घर के द्वार पर पहुँची। पुकारा : 'सुभद्रा !' कुछ देर बाद एक बढ़ी स्त्री द्वार खोलकर बाहर निकली । कॅली दीदी को देखते ही धाड़ मारकर रोने-पीटने लगी। बारबार उसके मुंह से यही निकलता : हाय मैं लुट गयी, मेरा सब-कुछ चला गया!
"कली दीदी मुझे चारों तरफ़ नज़र रखने के लिए वहीं खड़ा करके भीतर चली गयीं। बूढ़ी के साथ कुछ देर कानोंकान बातें करती रहीं। क्या वातें, किस बारे में, मैं नहीं सुन सका । उसके बाद कॅली दीदी बाहर निकलीं: बाहों में किसी तरह एक लड़की को संभाले हुए । पीली-सफ़ेद पड़ी हुई थी लड़की । कपड़ों पर रक्त के बड़े-बड़े धब्बे । पाँव धरती पर टेकते न बनता । कण्ठ से अस्फुट कराहें। मैं तो देखता रह गया।"
धनपुर काँप-सा गया। मानो समूचा दृश्य सामने हो । संभलते हुए वोला: "बूढ़ी बिलख-बिलखकर कह रही थी, 'इसे बचा सकेगा बेटा ? कल रात
10 / मृत्युंजय