Book Title: Mrutyunjaya
Author(s): Birendrakumar Bhattacharya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 12
________________ पर माणिक भक्त प्रकृति का था। बात-बात में प्रह्लाद के उदाहरण ले आता। उसकी मान्यता थी कि नृसिंह की नाई इस युग में दरिद्रनारायण का अवतार हुआ है। वह बोला : "तुम तो भाई, गुरु-गोसाईं, देव-पितर किसी को भी नहीं मानते। मगर इतना जान लो कि भगवान को अन्याय-अत्याचार सहन नहीं होता। कभी नहीं हआ। गान्धीजी ने जो मार्ग दोहराया है, हमें उस पर चलना है।" "किन्तु बारपूजिया में जो वह अहिंसामार्गी युवक एक ही गोली से उड़ा दिया , गया !" धनपुर के स्वर में व्यंग्य झलक आया। "किसकी बात कह रहे हो धनपुर ?” भिभिराम ने पूछा, "तिलक डेका की?" "हाँ।" "समझा । ठीक से बताओ तो क्या हुआ।" "मैंने तो रोहा में सुना था। कॅली दीदी रोहा में ही थीं। उसके पास सब ओर से समाचार पहुँचा करते हैं। उधर गौहाटी से, इधर कलियाबर से। कामपुर की तो बात ही छोड़ दो। बड़ी चतुर और भली स्त्री हैं। बुनाई के काम में तो बहुत ही निपुण । बारपूजिया की हैं । जानते ही हो । कामपुर के एक कोच घर में ब्याही गयीं। शायद मनुराम कोच नाम था उस व्यक्ति का। दुर्भाग्य से पिछले वर्ष किसी अनजाने रोग से मृत्यु हो गयी। याद है न ?" । __ "भोले, कॅली दीदी को कौन नहीं जानता। घर की हालत देखकर मैंने ही यहां रखाया था। आज भी कॅली दीदी वैसी की वैसी युवती बनी हुई हैं : सुन्दर भी, भली भी।" ___ "हाँ, सचमुच कॅली दीदी आज भी बड़ी अच्छी लगती हैं !" दो क्षण रुककर धनपुर बोला : "तो सुनो उस दिन वहाँ क्या हुआ। एकदम से कॅली मुझसे बोली : मेरे साथ चल सकोगे क्या? मैंने जानना चाहा : कहाँ ? उन्होंने बताया : बारपूजिया तक । मैंने प्रयोजन जाने बिना हां कर दी। अपनी गठरी-मुटरी लेकर वे तुरन्त साथ चल दी। दोपहर का समय था। फिर भी तेज़ पाँवों बढ़ी जा रही थीं। देखने में चम्पाफूल जैसीं। उनके साथ कहीं जाने का यह अवसर पाकर मेरा मन यों ही गद्गद हो उठा था।" भिभिराम के मुंह की ओर एक बार उसने देखा और कहता गया : "चलते-चलते एक गाँव पहुँचे हम लोग। गांव का नाम याद नहीं। पर चिड़िया का एक बच्चा तक जो वहाँ हो । मिलिटरी पुलिस तड़के ही आकर बच्चेबूढ़ों-सभी को पकड़ ले गयी थी।" "क्यों ?" बीच में ही भिभिराम पूछ उठा। 8 / मृत्युंजय

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