Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 5
________________ रानी के पैरों की 106759 gyanmandir@kobatirth.org Education International विकुमार की आत्मकथा उठे। रानी ने अपना स्वप्न सुनाते हुए कहा महाराज ! ऐसा विशाल श्वेत हाथी आज पहली बार देखा है। इस शुभ स्वप्न का क्या फल हो सकता है? राजा ने रानी को भद्रासन पर बैठने को कहा, और पूछा देवी ! इस मध्य रात्रि में अचानक आने का क्या विशेष कारण हुआ? श्रेणिक ने कहा देवी! तुम्हारा स्वप्न बहुत ही उत्तम है। तुम जल्दी ही एक श्रेष्ठ पुत्र की माता बनोगी। महाराज, अपराध क्षमा करें। अभी-अभी मैंने एक विचित्र स्वप्न देखा है। TYLEAD For Private Personal Use Only उत्तर सुनकर रानी धारिणी के चेहरे पर प्रसन्नता व लज्जा की गुलाबी आभा छितरा गई। www.jainelibrary.org

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