Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 17
________________ मेघकुमार की आत्मकथा प्रभु ने कहा भव्यो ! यह मानव-जीवन अमृत-कलश से भी अधिक मूल्यवान और उपयोगी है। इससे धर्माराधना करके जन्म-मरण-जरा (बुढ़ापे) के रोगों से मुक्त होकर अजर-अमर पद प्राप्त किया जा सकता है। यदि भोग-विलास प्रमाद आदि में इसे खो दिया तो, समझो अमृत से पैर धोने जैसी मूर्खता होगी। प्रभु का उद्बोधन सुनकर अनेक व्यक्तियों ने त्याग-नियम आदि व्रत ग्रहण किये। मेघकुमार का हृदय भी जाग उठा। उसने निवेदन किया Jain Education International भन्ते ! मैं भी अपने मानव-जीवन का पूरा लाभ उठाने के लिए संयम का पथ स्वीकारना चाहता हूँ। For Private : 5ersonal Use Only www.jainelibrary.org.

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