Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 16
________________ मेघकुमार की आत्मकथा पाँच पहाड़ियों की तलहटी में बसा गुणशील उद्यान अनेक प्रकार के सुन्दर वृक्षों व अनेक विश्राम भवनों से मण्डित था। वहाँ भगवान महावीर विशाल जन-समूह को सम्बोधित करते हुए एक उदाहरण दे रहे थे उदाहरण देकर भगवान ने प्रश्न किया Heel ME C Jain Education International भव्यो ! जिस अमृत द्वारा मनुष्य असाध्य रोगों से मुक्त हो सकता है। उस अमृत को पैर धोने में नष्ट करने को आप क्या कहेंगे ? भव्यो! किसी व्यक्ति को पुण्योदय से एक अमृत कलश प्राप्त हो गया। किन्तु उस मूर्ख को उसकी महत्ता का कुछ ज्ञान नहीं था। एक बार वह कीचड़ में सने पैर लेकर घर में आया। सामने ही अमृत कलश रखा हुआ था। उसने उसी में से अमृत लिया और पैरों का कीचड़ धोने में बर्बाद कर दिया। सभी जनता ने विनम्र स्वर में कहा भन्ते ! यह तो सरासर मूर्खता है ! घोर अज्ञान है। 14 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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