Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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मेधकुमार मेघ मुनि के हृदय में उथल-पुथल मचने लगी।
रात की घटना पर विचार करते-करते मेघ की ।
आँखें भर आईं। मैंने कितने कष्ट सहने के बाद यह मानव जन्म पाया है। अज्ञान के अंधेरे
मैं कितना कायर हूँ? थोड़े से शरीर-सुख की में भटकने के बाद ज्ञान का प्रकाश मिला
चिंता में आत्मा के असीम आनन्द को खो है। अब भटक गया तो फिर क्या होगा?
रहा हूँ। मेरी वीरता तो इसी में है कि शरीर को तप की अग्नि में झोंककर आत्मा को
कुन्दन बना लूँ।
दूसरों पर अनुकम्पा वही कर सकता है।
जो स्वयं सहिष्णु हो। सहनशीलता ही दया को जन्म देती है। जीवन-संग्राम को । जीतने के लिए सहनशील बनना होगा।
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