Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवाकर.. चित्रकथा) अंक १४ मूल्य १७.०० मेघकुमार की आत्म-कथा WHO 00 र निर्माण कार विकार अलि ज्ञान वृद्धि CORRCY Bio प्राकृत जयपुर JU भारती अकादमी मनोरंaporary.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा मगध सम्राट श्रेणिक के राजपरिवार का भगवान महावीर के धर्म संघ के साथ घनिष्ट सम्पर्क रहा है। वे स्वयं तथा उनकी पटरानी चेलना भगवान महावीर के परम भक्त थे। उनका ज्येष्ठ पुत्र सम्राट अजातशत्रु कूणिक भी अपने राज्यकाल में भगवान महावीर का परम उपासक रहा है। श्रेणिक राजा की अनेक रानियों, महामंत्री अभयकुमार तथा मेघकुमार, नंदीषेण आदि द्वारा भगवान के धर्म संघ में श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर विविध प्रकार की तपःसाधना करने का वर्णन जैन आगमों में उपलब्ध हैं। ___ मेघकुमार के प्रंसग का वर्णन ज्ञातासूत्र के प्रथम अध्ययन में बड़े विस्तार के साथ मिलता है। इस प्रसंग में प्रव्रज्या ग्रहण के पश्चात् उसी रात मेघकुमार के मन में उपजा अन्तर्द्वन्द्व, संयम जीवन में आने वाले कष्टों की कल्पना से जन्मी अधीरता और भगवान महावीर द्वारा मेघकुमार को उद्बोधित करने के लिए उसके पूर्व जीवन की घटनाओं का उद्घाटन। एक नन्हे से जीव की दया अनुकम्पा के लिए सहन किया हुआ कष्ट, और फलस्वरूप पशु जीवन त्यागकर । मानव जीवन की प्राप्ति तक का अन्तर-स्पर्शी वर्णन आज भी पाठक और श्रोता के हृदय को झकझोर देता है। ___भगवान के श्रीमुख से सुनी आत्म-कथा से मेघकुमार का हृदय जागृत हो जाता है, उसके शिथिल पड़े संकल्प पुनः | सुदृढ़ हो जाते हैं और वह अधीरता, उद्वेग और अन्तर्द्वन्दों को त्यागकर समग्र श्रद्धा के साथ संयम में स्थिर होता है। भगवान के श्रीचरणों में स्वयं को समर्पित कर जीवन भर के लिए संकल्प बद्ध होता है। मेघकुमार की यह आत्म-कथा युग-युग तक करुणा-अनुकम्पा, कष्ट सहिष्णुता और अधीरता त्यागकर धीरता का सन्देश देती रहेगी। सर्वज्ञ प्रभु महावीर का यह उद्बोधन आत्म-विस्मरण में डूबी आत्मा को आत्म-स्मरण कराकर संयम में स्थिर करने में परम सहायक बनेगी। और स्वयं कष्ट सहकर अनुकम्पा दया की शिक्षा देती रहेगी। साथ ही इस घटना से जीव-दया का महान फल भी सूचित होता है। पू. अध्यात्मयोगी श्रीमद् आचार्य विजय कलापूर्ण सूरीश्वर जी म. सा. के विद्वान शिष्यरल मुनिश्री पूर्णचन्द्रविजय जी ने ज्ञातासूत्र प्रथम अध्ययन के आधार पर मेघकुमार की आत्म-कथा का सुन्दर शब्दों में शब्द चित्र तैयार किया है, इसके लिए हम आपश्री के कृतज्ञ हैं। -महोपाध्याय विनयसागर -श्रीचन्द सुराना 'सरस' लेखक : मुनिश्री पूर्णचन्द्र विजय जी प्रबन्ध सम्पादक : संजय सुराना सम्पादक : श्रीचन्द सुराना 'सरस' चित्रण : श्यामल मित्र प्रकाशक दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने एम. जी. रोड, आगरा-282002 दूरभाष : 351165, 51789 श्री देवेन्द्र राज मेहता सचिव, प्राकृत भारती अकादमी 3826, यती श्याम लाल जी का उपाश्रय मोती सिंह भोमियो का रास्ता, जयपुर-302003 © संजय सुराना द्वारा दिवाकर प्रकाशन, ए-7, अवागढ़ हाउस, एम. जी. रोड, आगरा-282 002 भाष : (0562) 351165, 51789 ग्राफिक्स आर्ट प्रेस मथुरा द्वारा मुद्रित। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा विपुलाचल आदि पाँच पर्वतों की तलहटी में बसी मगध की राजधानी राजगिरि के शासक थेबिम्बसार श्रेणिक। चेलना, नंदा, धारिणी आदि अनेक रानियाँ और अभयकुमार, कूणिक (अजातशत्रु) आदि विशाल पुत्र परिवार था उनका। A 000 MINISHAITAGRA JAYER ofOICE ANIगासामागमा I Tump TUTTI ntATIdIntulin REATMuliunid ailahanifuiilBATO Education International Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 106759 मेषकुमार की आत्मकथा एक रात धारिणी रानी ने स्वप्न देखा, एक विशालकाय श्वेत हाथी सूंड उछालता हुआ आकाश से उतरकर रानी के मुँह के रास्ते उदर में प्रवेश कर रहा है। या 20 NSGOODल 600060666 VIRUR मानाAMRUPRAT 0000 | फिर दूसरे कक्ष में सोये महाराज श्रेणिक के पास आई। स्वप्न देखकर रानी जाग उठी। वह दो क्षण इस विचित्र स्वप्न पर विचार करती रही। Ooon INSTALLI LA-4 aAQScer Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रानी के पैरों की 106759 gyanmandir@kobatirth.org Education International विकुमार की आत्मकथा उठे। रानी ने अपना स्वप्न सुनाते हुए कहा महाराज ! ऐसा विशाल श्वेत हाथी आज पहली बार देखा है। इस शुभ स्वप्न का क्या फल हो सकता है? राजा ने रानी को भद्रासन पर बैठने को कहा, और पूछा देवी ! इस मध्य रात्रि में अचानक आने का क्या विशेष कारण हुआ? श्रेणिक ने कहा देवी! तुम्हारा स्वप्न बहुत ही उत्तम है। तुम जल्दी ही एक श्रेष्ठ पुत्र की माता बनोगी। महाराज, अपराध क्षमा करें। अभी-अभी मैंने एक विचित्र स्वप्न देखा है। TYLEAD For Private Personal Use Only उत्तर सुनकर रानी धारिणी के चेहरे पर प्रसन्नता व लज्जा की गुलाबी आभा छितरा गई। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा कुछ देर वार्तालाप के बाद रानी अपने कक्ष में । ऐसा निश्चय कर वह एक स्वच्छ आसन पर वापस आ गई। उसने सोचा बैठकर नमोकार मंत्र का स्मरण करने लगी। शुभ स्वप्न देखने के बाद नींद नहीं a लेना चाहिए। NDon MORNORWANA सूर्योदय तक वह प्रभु-स्मरण व धर्मध्यान करती रही। प्रातःकाल राजा श्रेणिक ने नगर के श्रेष्ठ विद्वान् स्वप्न-पाठकों को राजसभा में आने का आमंत्रण भेजा। राजसभा में एक सफेद झीने पर्दे के पीछे रानी बैठी। राजा ने स्वप्न-पाठकों को रानी को स्वप्न बताकर पूछाआपके शास्त्र अनुसार इस स्वप्न का क्या शुभ फल हो सकता है? Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान स्वप्न- पाठक ने अपना शास्त्र पढ़कर बताया मेघकुमार की आत्मकथा आपके समाधान से हमें प्रसन्नता और सन्तोष मिला, धन्यवाद । स्वप्न- पाठक को फल-फूल वस्त्र एवं स्वर्ण-मुद्राओं से सम्मानित करते हुए राजा ने कहा स्वप्नफल सुनकर रानी धारिणी और श्रेणिक प्रसन्न हो गये। आशीर्वाद देकर स्वप्न-पाठक लौट गये। महाराज ! श्वेत हाथी देखना श्रेष्ठ शुभ स्वप्न है। यह सूचित करता है कि महारानी धारिणी शीघ्र ही एक उत्तम पुत्र की माता बनेगी और यह पुत्र आपकी यश-कीर्ति-वैभव को बढ़ाने वाला होगा। गर्भ-काल के तीसरे महीने रानी धारिणी के मन में एक दोहद उत्पन्न हुआ। वह उस पर विचार करने लगी ओह ! कितनी विचित्र और असम्भव इच्छा है मेरी ! कैसे पूरी होगी? अपने मुँह से कैसे बताऊँगी महाराज को यह बात For Private Personal Use Only Do रानी इसी विचार में उदास हो गई। Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा एक दिन बसन्ता नाम की दासी ने महारानी से पूछा महारानी जी ! इस समय आपको तो प्रसन्न और आनन्दित रहना चाहिए। आप उदास क्यों हैं? यदि आप यूँ ही गुमसुम रहेंगी तो महाराज हमें डाँटेंगे ! बताइये न? क्या बात है? बसन्ता ! जो बात बननी असम्भव लगती है उसे मुँह से कहने में भी लम्जा आती है। सुनोगी तो तुम भी मुझे मूर्ख समझोगी। ( DOVOORVOON VVNOG तभी महाराज श्रेणिक अचानक राजमहल में आ गये। दासियाँ वहाँ से चली गईं। राजा ने रानी को उदास देखा तो पूछादेवी ! इस बसन्त ऋतु में तो फूल खिलते हैं, तुम तो मुआती जा रही हो? तुम्हारे चेहरे पर चिन्ता की छाया देखकर मेरा मन भी दुःखी हो रहा है?क्या बात है? RAMES SAILBAITRINION NANDGANACEANY LFre600 For Private 6ersonal Use Only www.ia ibrary org Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा कुछ नहीं स्वामी। बस यूँ ही मेरे मन में एक विचित्र असम्भव दोहद उत्पन्न हुआ है। मुँह से कहने में भी संकोच होता है। vo संकोच कैसा? क्या मुझे पराया समझती हो, या कायर? बताओ प्रिये तुम्हारे) मन में क्या दोहद उत्पन्न हुआ है। DEV-- CCEO महाराज! मन में एक उमंग उठी है। आकाश में बादल छाये हों, बिजलियाँ चमक रही हों। नन्हीं-नन्हीं फुहारें बरस रही हों। भूमि पर चारों तरफ हरियाली छाई हो, मोर पिउ-पिउ कर नाच रहे हों, ऐसे सुहावने मौसम में मैं श्वेत गजराज पर बैठू। पीछे छत्र तानकर आप विराजे हों, मेरी सवारी नगर के बीचों-बीच निकले। TITUTERIOR JulyRINDAVAILABILP कहते-कहते रानी ने शर्म से गर्दन नीची झुका ली। Erallation International For Privat 7 Personal Use Only . Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा राजा श्रेणिक रानी का दोहद सुनकर चकित हो गये। परन्तु सान्त्वना देते. बोले हुए रानी को आश्वासन देकर श्रेणिक वापस राजसभा में आकर बैठ गये। मैंने रानी का मन बहलाने के लिए उसे आश्वासन तो दे दिया, अब यह विचित्र दोहद कैसे पूर्ण होगा? acco 000000 इन्हीं विचारों में खोये राजा बार-बार आकाश की तरफ देखने लगे। देवी ! उद्यमी एवं बुद्धिमान् व्यक्ति लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। चिन्ता मत करो। हम आपका दोहद पूर्ण करने की शीघ्र ही व्यवस्था करेंगे । तभी महामंत्री अभयकुमार पिताश्री के अभिवादन के लिए आया। परन्तु राजा ने उधर ध्यान ही नहीं दिया। कुछ देर बाद राजा ने अभयकुमार को देखा तो अचकचाकर बोले अभय ! तुम कब आ गये ? For Private Personal Use Only महाराज ! मुझे तो काफी समय हो गया यहाँ खड़े ! आप आज किस चिन्ता में हैं ? . Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा श्रेणिक उठकर अभय के साथ एकान्त मंत्रणाकक्ष में चले गये। अभय कुमार को रानी महाराज ! आप चिन्ता न करें। यह कार्य धारिणी के दोहद की बात सुनाकर बोले बुद्धि-बल से नहीं, किन्तु देव-बल से अभय ! मैंने तुम्हारे बुद्धि-बल पर भरोसा करके ही WIसफल होने वाला है। मैं प्रयत्न करता हूँ। रानी को इसकी पूर्ति का आश्वासन दे दिया है। अब ) इसे सम्पन्न करने की योजना बनाओ। WADIUULGRyuuga NiRIA दूसरे दिन अभयकुमार अपनी पौषधशाला में आया। स्वच्छ वस्त्र पहनकर अपने मित्र देव का आस्वान करने बैठा। तीन दिन के निर्जल तप व आराधना से प्रसन्न होकर मित्र देव आकाश में प्रकट हुआ। अभय ने देव को प्रणाम किया। और अपनी छोटी माता रानी धारिणी का दोहद बताकर कहा "इसे पूर्ण करना अब आपके हाथ में है। www कलकत्र मित्र ! निश्चिन्त रहो तुम ! अपने मित्रों और आराधकों की सहायता करना हमारा धर्म है। WWW R Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा | देव-लीला से अगले दिन देखते ही देखते आकाश में काले कजराले बादल छा गये। मेघगर्जना होने लगी। बिजलियाँ चमकने लगीं। रिमझिम फुहारें बरसने लगीं और सारी पृथ्वी जैसी हरियाली से नाच उठी। राजा श्रेणिक ने रानी धारिणी को कहा ZOYOYO देवी ! देखो तुम्हारे भाग्य से मौसम कितना सुहावना हो गया है? चलो, हम वन-विहार को चलते हैं? राजा श्रेणिक के आदेश से अभयकुमार ने वन-विहार की तैयारी पूर्ण कर दी। रानी धारिणी एक सफेद हाथी पर बैठी। पीछे राजा श्रेणिक हाथ में छत्र लेकर बैठ गये। उनकी सवारी नगर के बीचों-बीच से होकर गुजरी, नागरिक जनों ने उन्हें अभिवादन किया। महारानी धारि की जय ! महाराज की जय हो। 11 दोहद पूर्ण होने से रानी की उदासी दूर हो गई।" 10 . Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा कुछ माह पश्चात् समय आने पर प्रियंवदा दासी ने राजसभा में आकर महाराज श्रेणिक को बधाई दी 22X0A महाराज ! बधाई हो । महारानी धारिणी ने एक अति सुन्दर पुत्र को जन्म दिया है। अमारि-घोषणा: किसी पंचेन्द्रिय जीव को नहीं मारने की घोषणा दासी महाराज को प्रणाम करके सभी को खुशी के समाचार सुनाती हुई चली गई। नगर में आठ दिन तक बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया। गरीबों को अन्न दान, वस्त्र दान और पशु-पक्षियों को अभयदान की घोषणा कर दी गई। 11 आह ! कितनी प्रसन्नता की बात है। प्रियवंदा, यह मोतियों का हार हमारी तरफ) से इनाम लो । und INKKEE सुनो ! सुनो ! रा धारिणी के की पुत्र-जन्म खुशी में नगर में आठ दिन तक अमारि-घोषणा जाती है। www Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा प्रीतिभोज के उत्सव पर राजा ने स्वजनों को बताया रानी धारिणी को मेघ का दोहद उत्पन्न हुआ था। इस कारण इस बालक का नाम मेघकुमार रखा जाये। (राजकुमार मेघकुमार चिरायु हों। बड़े लाड़-प्यार मेघकुमार का लालन-पालन होने लगा। आठ वर्ष का होने पर मेघकुमार को शिक्षण के लिए गुरुकुल में भेजा गया। राजा ने सभी स्वजन मित्रों को मान-सम्मान देकर विदा किया। वत्स ! गुरुकुल के तीन नियमों का सदा पालन करोगे सत्य, संयम और अनुशासन । Huma A कैल कलाचार्य ने उसे ८ वर्ष तक सब प्रकार का शिक्षण देकर योग्य बनाया। पृष्ठपृष्ठ 12 मेघकुमार ! अब तुम्हारा शिक्षण पूर्ण हो गया है। जाओ अपने राज्य में जाकर प्रजा का हित करो। सत्य, अहिंसा, करुणा, दया का हमेशा अपने जीवन में पालन करो। M Mon कलाचार्य से आशीर्वाद लेकर मेघकुमार अपने राज्य वापस आ गया। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा युवा होने पर आठ सुन्दर राजकुमारियों के साथ मेघकुमार का विवाह हुआ। TE333BDO एण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण Jण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण HAAREEN GGARAMM Rua मेघकुमार अपनी आठों रानियों के साथ सुख-पूर्वक रहने लगा। कुछ वर्षों बाद भगवान महावीर मगध की राजधानी राजगृह में | | मेधकुमार ने आनन्दित होकर कहापधारे। भगवान के दर्शन के लिये जाती हुई भीड़ देखकर भगवान पधारे हैं? मेघमार ने महलों के प्रतिहारी से पूछा-1 0 वाह ! हम भी दर्शन करने जायेंगे। आज नगर में कुमार ! तीर्थंकर भगवान महावीर क्या उत्सव है? नगर के गुणशील उद्यान में पधारे हैं। ये लोग दर्शनों के लिए जा रहे हैं। bp मेघकुमार अपनी आठों पत्नियों के साथ रथ में बैठकर भगवान महावीर के दर्शन करने चल दिया। Education International For Privat13ersonal use only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा पाँच पहाड़ियों की तलहटी में बसा गुणशील उद्यान अनेक प्रकार के सुन्दर वृक्षों व अनेक विश्राम भवनों से मण्डित था। वहाँ भगवान महावीर विशाल जन-समूह को सम्बोधित करते हुए एक उदाहरण दे रहे थे उदाहरण देकर भगवान ने प्रश्न किया Heel ME C भव्यो ! जिस अमृत द्वारा मनुष्य असाध्य रोगों से मुक्त हो सकता है। उस अमृत को पैर धोने में नष्ट करने को आप क्या कहेंगे ? भव्यो! किसी व्यक्ति को पुण्योदय से एक अमृत कलश प्राप्त हो गया। किन्तु उस मूर्ख को उसकी महत्ता का कुछ ज्ञान नहीं था। एक बार वह कीचड़ में सने पैर लेकर घर में आया। सामने ही अमृत कलश रखा हुआ था। उसने उसी में से अमृत लिया और पैरों का कीचड़ धोने में बर्बाद कर दिया। सभी जनता ने विनम्र स्वर में कहा भन्ते ! यह तो सरासर मूर्खता है ! घोर अज्ञान है। 14 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा प्रभु ने कहा भव्यो ! यह मानव-जीवन अमृत-कलश से भी अधिक मूल्यवान और उपयोगी है। इससे धर्माराधना करके जन्म-मरण-जरा (बुढ़ापे) के रोगों से मुक्त होकर अजर-अमर पद प्राप्त किया जा सकता है। यदि भोग-विलास प्रमाद आदि में इसे खो दिया तो, समझो अमृत से पैर धोने जैसी मूर्खता होगी। प्रभु का उद्बोधन सुनकर अनेक व्यक्तियों ने त्याग-नियम आदि व्रत ग्रहण किये। मेघकुमार का हृदय भी जाग उठा। उसने निवेदन किया भन्ते ! मैं भी अपने मानव-जीवन का पूरा लाभ उठाने के लिए संयम का पथ स्वीकारना चाहता हूँ। For Private : 5ersonal Use Only . Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेषकुमार की आत्मकथा भगवान ने कहा मेषकुमार अपने घर पर आया और माता-पिता से मुनि दीक्षा लेने की अनुमति माँगी। रानी धारिणी ने मेघ ! संयम का पथ तलवार की धार पर चलने आँसू बहाते हुए कहाजैसा कठिन है। किन्तु दृढ़ संकल्पी और विरक्त ना बेटा ना ! तू बहुत सुकुमार है, आत्मा के लिए यह फूलों का राजमार्ग भी है। सुखों में पला है। श्रमण-जीवन के कष्ट तुम्हारी आत्मा को जैसा सुख हो वैसा करो। तुझसे बर्दाश्त नहीं हो सकेंगे। JABAR Live ल्ल्यात मेघकुमार ने कहा CDA बड़ा दुष्कर है यह मार्ग 7 I माता, जैसे सोने को निखारने के | लिए अग्नि में तपाना ही पड़ता है, वैसे आत्मा को पवित्र और निर्मल बनाने के लिए संयम-तप की अग्नि में तपना आवश्यक है। संयम व तप के बिना सिद्धि नहीं मिल पाती। मुझे जन्म-मरण से मुक्त होकर " सिद्भगति-मुक्ति प्राप्त करना है। यात 5000000000000000 500 TITLUTITLETRITIEMLIVETTELLITE 16 Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा माता-पिता के बहुत समझाने पर भी मेधकुमार ने अपना निर्णय नहीं बदला। तब राजा श्रेणिक ने कहावत्स ! ठीक है, तू संयम पथ पिताजी, पर बढ़ना चाहता है तो हम | कहिए आपका नहीं रोकते, परन्तु हमारी ) आदेश सिर एक इच्छा है। माथे पर है। वत्स ! हम चाहते हैं, दीक्षा Forलेने से पहले एक दिन के लिए तेरा राज्याभिषेक कर हम अपने मन का मोद पूरा कर लेवें। पिताश्री! जैसी आपकी इच्छा el4 OYOY Concokola ACCIE राजाज्ञा से मेघकुमार का राज्याभिषेक महोत्सव मनाया गया। राजपुरोहित ने तिलक लगाया। माता-पिता ने आशीर्वाद दिया। प्रजा ने अभिवादन कर विविध उपहार दिये। पूरे नगर में मिष्टान्न और स्वर्ण-मुद्रायें बाँटी गईं।। भाई ! सच्चा त्याग तो यही। है। आज राजतिलक हुआ और कल साधु बन जायेगा। TranION Kantional 117 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेधकुमार की आत्मकथा दूसरे दिन मेघकुमार की शोभा यात्रा निकली। एक भव्य शिविका में मेघकुमार को बैठाया गया। हजारों स्त्री-पुरुष जयनाद करते हुए गुणशील उद्यान में पहुँचे। मेघकुमार भगवान महावीर के सम्मुख मुनि वेश धारण कर उपस्थित हुआ। मेघ, आज से तुम संयम-साधना के पथ पर बढ़ रहे हो। जीवन की प्रत्येक गति विधि में विवेक एवं यतनापूर्वक आचरण करोगे। COVE CHA ch भगवान महावीर ने मेघकुमार को मुनि-दीक्षा प्रदान कर श्रमणों को सौंप दिया। रात हुई। सोने के समय सभी मुनियों ने एक विशाल कक्ष में क्रमश: अपनी-अपनी शय्या लगाई। मेघ मुनि-दीक्षा क्रम में सबसे छोटे थे इसलिए सबके अन्त में द्वार के पास उनकी शय्या लगी। वहीं से बाहर जाने-आने का रास्ता था। உலவவவ. FANAPAYERषणश्च Soad 199शश PAN 1 : Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रात को मेघ मुनि को नींद की झपकी लगती इतने में ही लघु-शंका के लिए बाहर आते-जाते मुनियों के पाँवों का स्पर्श होता तो उसकी नींद खुल जाती। 99709092 मेघकुमार की आत्मकथा इस प्रकार रात भर नींद नहीं आने से मेघ मुनि का मन खिन्न और व्यग्र हो उठा। वे सोचने लगे 100 कल तक मैं राजमहलों की कोमल शय्या पर आराम से सोता था। आज भूमि पर सोना और रात भर पाँवों की आहटों से जागना तथा ठोकरें खाना, कितना कठिन है यह मुनि जीवन । जिन्दगी भर इस प्रकार कष्ट सहना मुझसे तो नहीं होगा । मेघ मुनिका मन उद्विग्न हो गया। आते-जाते श्रमणों को देखकर उसके मन में विचार उठने लगे। 00000000000 कल तक राजभवन में सब लोग मेरा आदर करते थे, और आज मुझे पैरों की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। मुझसे यह बर्दाश्त नहीं होता । श्रमण जीवन की यह कठिन चर्या मुझसे नहीं निभेगी । मैं तो प्रातःकाल होते ही भगवान से पूछकर वापस अपने घर चला जाऊँगा ! C रात भर मेघ मुनि अपनी शय्या पर बैठे-बैठे इसी प्रकार विकल्पों में उलझे रहे। 19 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा प्रातः होते ही वे भगवान महावीर के समक्ष उपस्थित हुए। वे कुछ बोलते उससे पहले ही भगवान पूछ लिया ने el मेघ ! तुम रात भर सोये नहीं? नींद नहीं आई ! विचारों की उथल-पुथल में बहुत परेशान रहे न? 16 भगवान महावीर बोले Rec 1 हाँ भन्ते ! मेरा मन रात भर बहुते अशान्त रहा। मुझसे श्रमण-जीवन के ये कष्ट बर्दाश्त नहीं हो सकते इसलिए मैं अपने घर वापस लौट जाना चाहता हूँ ! मेघ, अगला कोई निर्णय लेने से पहले तुम एक घटना सुन तुम्हारे अशान्त मन को अवश्य ही शान्ति मिलेगी। VOYSVARR 00 CLOCOOO 20 भन्ते ! अवश्य ! सुनाइये। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेधकुमार बहुत समय पहले वैतादयगिरि पर्वत की तलहटी में एक हरा-भरा विशाल जंगल था। उस जंगल में सैकड़ों हाथी-हथिनियों के साथ उन हाथियों का राजा सुमेरुप्रभ रहता था। सुमेरुप्रभ अपने हाथियों के दल के साथ सरोवरों, ईख के खेतों और केले के वनों में क्रीड़ा | करता और मस्ती से घूमता रहता था। WHAacar 12thirala AKULU Avy WAVAN एक बार ग्रीष्म ऋतु में उस जंगल में भीषण आग लगी। हवा के झोंकों के साथ देखते-देखते हो आग समूचे जंगल में फैल गई। जंगली जीव, सिंह, चीते, हरिण, खरगोश आदि आग से बचने के लिए इधर-उधर सुरक्षित स्थानों को भागने लगे। SHA CIALIS 21 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार को उस समय वह हाथियों का राजा सुमेरुप्रभ जो बहुत बूढ़ा और दुर्बल हो चुका था, आग की लपटों से खुद बचाने के लिए भागता-भागता गर्मी के मारे व्याकुल हो उठा। 1. आग की चिनगारियाँ उछल-उछलकर उसके शरीर पर गिर रही थीं। चमड़ी झुलस रही थी। ओह ! कितनी भीषण आग है। यह आग तो जंगल के सब पशु-पक्षियों को जलाकर भस्म कर देगी। गर्मी से सुमेरुप्रभ का गला सूख रहा था। पानी की खोज में इधर-उधर भटकता हुआ वह एक सूखे दलदले सरोवर के किनारे पहुँच गया। आह ! पानी । कण्ठ सूख गया है। तालाब में जाकर भर पेट पानी पीऊँगा। 22 Tammy Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेधकुमार सरोवर में पानी कम दलदल ही ज्यादा था। सुमेतप्रभ पानी पीने के लिए दलदल में उतरा तो गहरा धंस गया। जैसे-जैसे वह निकलने की चेष्टा करता, और गहरा फँसता जाता। वह न तो पानी तक पहुँच पाया और न ही वापस किनारे पर आ सका। बीच दलदल में ही कई दिनों तक भूखा-प्यासा फँसा रहा। इसी बीच उस यूथ का एक नौजवान हाथी जो सुमेरुप्रभ से खार खाये हुए था, उधर आ गया। उसने बदला लेने का यह मौका देखा तो अपने तीखे दंत शूलों से सुमेरुप्रभ को घायल कर लहूलुहान करने लगा। ication International For Private 23sonal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार सुमेरूप्रभ सहायता के लिए चिंघाड़ता, चीखता घायल सुमेरुप्रभ वेदना से कराहता, भूख-प्यास रहा, परन्तु उस खूखार हाथी के डर के कारण से छटपटाता, एक दिन मर गया। कोई भी दूसरे हाथी सहायता के लिए नहीं आये। हूँ हा बचाओ। जवान होने पर अपने यूथ का राजा बन गया। सैकड़ों हाथी-हथिनियाँ उसके पीछे रहते थे। वह हाथी मरकर गंगा नदी के दक्षिण तट पर विंध्यगिरि की तलहटी में पुनः हाथी बना। यहाँ पर उसके शरीर का रंग लाख जैसा लाल था। वह चार दाँत वाला हाथी, मेरुप्रभ नाम से विख्यात हुआ। WiMAA SHANKaala TUEN 24 For Private Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार एक बार विंध्यगिरि के बाँस के वनों में भयंकर आग लगी। जानवरों में भगदड़ मच गई। हाथियों का राजा मेरुप्रभ हाथी-हथिनियों के साथ जंगल में इधर-उधर भागकर अपनी जान बचाता रहा। वन-दावानल को देखकर मेरुप्रभ सोचने लगा मैंने पहले भी कभी इसी प्रकार का दावानल देखा है। सोचते-सोचते उसे अपना पिछला जन्म याद आ गया। ICL میدان Aerce." 25 www भंयकर आग की लपटों में जलता जंगल और वन-जीवों की चीत्कारों से उसका मन काँपने लग गया। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार आग का प्रकोप शान्त होने पर उसने अपने साथियों से कहा- | | मेरुप्रभ ने आदेश दिया ग्रीष्म ऋतु में बार-बार जंगल में आग लगती है और हमें इसी प्रकार भयंकर विनाश का सामना करना पड़ता है। अब इससे बचने के लिए कोई उपाय करना चाहिए। एक योजन मैदान को एकदम साफ कर डालो जिसमें घास-फूंस का एक तिनका भी न रहे। यह मण्डल ऐसी आपत्ति के समय हमारे लिए सुरक्षित आश्रय स्थान बनेगा। SKIN CITITION TATALAALIS आप हमारे राजा हैं। बताइये क्या उपाय करें? सभी हाथी जुट पड़े। देखते ही देखते एक योजन का साफ-सुथरा मण्डल तैयार हो गया। Radio NEW 26 irww.lain library.org Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार एक बार फिर वन में आग लगी। चारों तरफ से जंगली जानवर भाग-भागकर उसी मण्डल में आकर घुसने लगे। मेरुप्रभ भी अपने हाथियों के परिवार के साथ वहीं आश्रय लेने आ गया। मण्डल जंगली पशुओं से खचाखच भर उठा। तिल रखने को भी खाली स्थान नहीं बचा। अचानक मेरुप्रभ के पेट पर खुजली आयी, उसने एक पैर ऊँचा उठाया। नीचे जगह । खाली होते ही एक नन्हा खरगोश वहाँ आकर बैठ गया। मरुप्रभ पाँव नीचे रखने लगा, नन्हा-सा खरगोश वहाँ बैठा दिखाई दिया। उसका हृदय करुणा से भर गया। मेरे पाँव के नीचे दबकर इस नन्हें-से खरगोश का तो कचूमर ही निकल जायेगा। उसने अपना एक पैर ऊपर अधर में ही उठाये रखा।। Education International www.jaimelibrary.org Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँव ऊपर उठाये वह सोचता रहा Ju W जैसे मुझे अपनी जान प्यारी है, उसी प्रकार इस नन्हें-से जीव को भी अपनी जान प्यारी है। मेघकुमार 119 जान बचाने के लिये ही यह बेचारा मेरे मण्डल में आया है, तो इसकी रक्षा करना भी मेरा धर्म है। हाथी के मन में करुणा का झरना फूट पड़ा। उसने ऊँचा उठा पैर वहीं थाम लिया। लगभग ढाई दिन-रात के बाद वह वन-अग्नि शान्त हुई। जंगली जानवर वहाँ से निकलकर अपने-अपने स्थान पर जाने लगे। खरगोश भी वहाँ से हटा। मेरुप्रभ ने सोचा अब जगह खाली हो गई, मैं अपना पाँव नीचे रखूँ। 0000 28 और उसने पाँव नीचा किया। . Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार की आत्मकथा ढाई दिन-रात तीन पाँव पर खड़े रहने से उसके शरीर का संतुलन बिगड़ गया। वह धड़ाम भूमि पर गिर पड़ा। भूख-प्यास और बुढ़ापे की दुर्बलता के कारण वह हाथी भूमि से वापस उठ नहीं सका। उसका सारा शरीर दर्द से दुःख रहा था। वह तीन दिन-रात तक भयंकर वेदना भोगता, भूखा-प्यासा पड़ा रहा, परन्तु उसके मन में प्रसन्नता थी। दया और करुणा की भावना के कारण दर्द के समय भी. उसे शान्ति अनुभव हो रही थी। उस हाथी ने वहाँ से अपना आयुष्य पूर्ण कर राजगृह के राजा श्रेणिक की रानी धारिणी के गर्भ से जन्म लिया । 29 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेघकुमार भगवान महावीर ने यह घटना सुनाकर मेध मुनि को उद्बोधित किया मेघ ! याद करो, तुम्हीं थे वह मेरुप्रभ हाथी, जिसने पशु योनि में एक नन्हें-से जीव की दया करके इतना महान् पुण्योपार्जन किया कि यहाँ एक राजकुमार बने । मेघ ! सोचो, देखो, पशु योनि में एक जीव की रक्षा के लिए तुमने इतनी पीड़ा सही, और अब मनुष्य जन्म में सम्यक्जान चारित्र प्राप्त करके भी तुम एक रात के थोड़े से कष्ट से घबरा गये? मेघ मुनि की स्मृतियों में पूर्वजन्म का सभी घटनाक्रम चलचित्र की भाँति आने लगा। कुछ देर तक वह अतीत में खोया रहा, अपने पूर्व जीवन की घटनाओं को ज्ञान की आँखों से देखता रहा। For Private Sesonal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेधकुमार मेघ मुनि के हृदय में उथल-पुथल मचने लगी। रात की घटना पर विचार करते-करते मेघ की । आँखें भर आईं। मैंने कितने कष्ट सहने के बाद यह मानव जन्म पाया है। अज्ञान के अंधेरे मैं कितना कायर हूँ? थोड़े से शरीर-सुख की में भटकने के बाद ज्ञान का प्रकाश मिला चिंता में आत्मा के असीम आनन्द को खो है। अब भटक गया तो फिर क्या होगा? रहा हूँ। मेरी वीरता तो इसी में है कि शरीर को तप की अग्नि में झोंककर आत्मा को कुन्दन बना लूँ। दूसरों पर अनुकम्पा वही कर सकता है। जो स्वयं सहिष्णु हो। सहनशीलता ही दया को जन्म देती है। जीवन-संग्राम को । जीतने के लिए सहनशील बनना होगा। 100000 OM DHODIAMOM नामनिला FM सामान का Jain Education Interational For Privatlersonal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यार सहि शान मनिषकुमार मेघ मुनि का हृदय नाग गया। उसका रोम-रोमं पुलक उठा। भगवान के चरणों के पास आकर बोलने लगे A/भन्ते ! मैं भटक गया था। आपने मुझे जगा दिया। आप मेरे जीवन रथ के सारथी बने मेरी अज्ञानता और असहिष्णुता पर क्षमा कीजिये। भगवान महावीर ने आशीर्वाद का हाथ उठाया (मेघ ! तुम जाग उठे। (बहुत अच्छा हुआ। Aहाँ भन्ते ! इसी दया और तितिक्षा के प्रभाव से मैं आज पशु से मानव बना हूँ। अब मेरे मन के कण-कण में दया-अनुकम्पा का अमर नाद गूंजता रहेगा। मैं | अपनी जीवन यात्रा में तितिक्षा और सहनशीलता के सहारे आगे बढ़ते रहने का दृढ़ संकल्प करता हूँ प्रभु ! MWWY अब से मैं जीवन पर्यंत के लिये अभिग्रह करता हूँ कि आँख के सिवा मैं अपने शरीर के किसी भी अंग का उपचार नहीं कराऊँगा। मेरा सर्वस्व आपके चरणों में समर्पित है। LATTA VANDAANAVANAVAVAY इस आत्म-मागृति के बाद मेघ मुनि ने भगवान महावीर के चरणों में अपने को पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया। संयम-शील-श्रुत-तप की आराधना करते हुए बारह वर्ष तक उन्होंने विविध प्रकार के उत्कृष्ट तप और निर्मल संयम की आराधना करके विपुलाचल पर जाकर एक मास का अनशन किया। परम समाधि भावपूर्वक देह त्यागकर विजय महाविमान में महान ऋद्धि सम्पन्न देव बने। समाप्त 32 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बात आपसे भी सम्माननीय बन्धु, सादर जय जिनेन्द्र ! जैन साहित्य में संसार की श्रेष्ठ कहानियाँ का अक्षय भण्डार भरा है। नीति, उपदेश, वैराग्य, बुद्धिचातुर्य, वीरता, साहस, मैत्री, सरलता, क्षमाशीलता आदि विषयों पर लिखी गई हजारों सुन्दर, शिक्षाप्रद, रोचक कहानियों में से चुन-चुनकर सरल भाषा-शैली में भावपूर्ण रंगीन चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक छोटा-सा प्रयास हमने प्रारम्भ किया है। इन चित्र कथाओं के माध्यम से आपका मनोरंजन तो होगा ही, साथ ही जैन इतिहास, संस्कृति, धर्म, दर्शन और जैन जीवन मूल्यों से भी आपका सीधा सम्पर्क होगा। हमें विश्वास है कि इस तरह की चित्रकथायें आप निरन्तर प्राप्त करना चाहेंगे। अतः आप इस पत्र के साथ छपे सदस्यता फार्म पर अपना पूरा नाम, पता साफ-साफ लिखकर भेज दें। आप एकवर्षीय सदस्यता (११ पुस्तकें), दो वर्षीय सदस्य ( २२ पुस्तकें), तीन वर्षीय सदस्यता (३३ पुस्तकें), चार वर्षीय सदस्यता (४४ पुस्तकें), पाँच वर्षीय सदस्यता (५५ पुस्तकें) ले सकते हैं। आप पीछे छपा फार्म भरकर भेज दें। फार्म व ड्राफ्ट / M. O प्राप्त होते ही हम आपको रजिस्ट्री से अब तक छपे अंक तुरन्त भेज देंगे तथा शेष अंक ( आपकी सदस्यता के अनुसार) हर माह डाक द्वारा आपको भेजते रहेंगे। धन्यवाद ! नोट- अगर आप पूर्व सदस्य हैं तो हमें अपना सदस्यता क्रमांक लिखें। हम उससे आगे के अंक ही आपको भेजेंगे। • क्षमादान ....... भगवान ऋषभदेव णमोकार मंत्र के चमत्कार चिन्तामणि पार्श्वनाथ • भगवान महावीर की बोध कथायें • बुद्धि निधान अभय कुमार • शान्ति अवतार शान्तिनाथ • किस्मत का धनी धन्ना • करुणा निधान भ. महावीर (भाग १, २) • राजकुमारी चन्दनबाला सिद्ध चक्र का चमत्कार दिवाकर चित्रकथा की प्रमुख कड़ियाँ • मृत्यु पर विजय आचार्य हेमचन्द्र और सम्राट कुमार पाल • अहिंसा का चमत्कार • महायोगी स्थूलभद्र • सती मदनरेखा • युवायोगी जम्बू कुमार *0 मेघकुमार की आत्मकथा • बिम्बिसार श्रेणिक • महासती अंजना • चक्रवर्ती सम्राट भरत • भगवान मल्लीनाथ ● ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती • महासती अंजना सुन्दरी विचित्र दुश्मनी • भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण आपका श्रीचन्द सुराना 'सरस' सम्पादक अर्जुन माली: दुरात्मा से बना महात्मा • पिंजरे का पंछी • चन्द्रगुप्त और चाणक्य • भक्तामर की चमत्कारी कहानियाँ • महासती सुभद्रा असली खजाना • महासती सुलसा Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वार्षिक सदस्यता फार्म मान्यवर, ___मैं आपके द्वारा प्रकाशित दिवाकर चित्रकथा का सदस्य बनना चाहता हूँ। कृपया मुझे निम्नलिखित वर्षों के लिए सदस्यता प्रदान करें। (कृपया उचित जगह ] का निशान लगायें) 0 एक वर्ष के लिए (११ पुस्तकें) १७०/- दो वर्ष के लिए (२२ पुस्तकें) ३२०/ 0 चार वर्ष के लिए (४४ पुस्तकें) ६००/- । पाँच वर्ष के लिए (५५ पुस्तकें) ७५०/मैं शुल्क की राशि एम. ओ./ड्राफ्ट द्वारा भेज रहा हूँ। मुझे नियमित चित्रकथा भेजने का कष्ट करें। 88888888888888856038833828t8TIT838783838383838ZZ382 नाम Name (in capital letters) & Ya Address - पिन Pin - _Amount _ M. O./D. D. No. _ _Bank __ नोट-पुराने सदस्य कृपया अपना सदस्यता क्रमांक लिखें। हम अपने आप उनकी सदस्यता का नवीनीकरण अगले वर्षों के लिए कर देंगे। हस्ताक्षर Sign. कृपया चैक के साथ 20/- रुपया अधिक जोड़कर भेजें। चैक/ड्राफ्ट/M.O. दिवाकर प्रकाशन, आगरा के नाम से निम्न पते पर भेंजे। 2982303390238-99.99,9999,03939.99%ERLIAMARP २१.०० DIWAKAR PRAKASHAN A-7, AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA, M. G. ROAD, AGRA-282 002 PH.: (0562) 35 1165, 51789 हमारे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सचित्र भावपूर्ण प्रकाशन पुस्तक का नाम मूल्य पुस्तक का नाम मूल्य पुस्तक का नाम मूल्य सचित्र भक्तामर स्तोत्र , ३२५.०० सचित्र ज्ञातासूत्र (भाग २) ५००.०० सचित्र भावना आनुपूर्वी सचित्र णमोकार महामंत्र १२५.०० सचित्र कल्पसूत्र ५००.०० भक्तामर स्तोत्र (जेबी गुटका) १८.०० सचित्र तीर्थंकर चरित्र २००.०० सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र ५००.०० मंगल माला (सचित्र) २०.०० सचित्र ज्ञातासूत्र (भाग १) ५००.०० सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र ४२५.०० मंगलम् चित्रपट एवं यंत्र चित्र सर्वसिद्धिदायक णमोकार मंत्र चित्र २५.०० श्री गौतम शलाका यंत्र चित्र (प्लास्टिक फ्लैप में) १५.०० । भक्तामर स्तोत्र यंत्र चित्र (प्लास्टिक फ्लैप में) २५.०० श्री सर्वतोभद्र तिजय पहुत्त यंत्र (प्लास्टिक फ्लैप में) १०.०० श्री वर्धमान शलाका यंत्र चित्र (प्लास्टिक फ्लैप में) १५.०० I TTERTAI.Wछछछ छ ! Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PORARIOMARITAINMETROMOTIONARIERROR ISTMAITRIORRORMATINENTARIAL श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मंदिर ट्रस्ट मद्रास का सुवर्णमय इतिहास दक्षिण भारत के तामिलनाडु प्रान्त का संभ्रान्त महानगर मद्रास (तमिलनाम चैनपट्टनम्) सन् १९०४ से पुण्यशाली श्रावकों द्वारा एक छोटे से रूप में स्थापित ट्रस्ट श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मंदिर की व्यवस्था चला रहा है।। इस बीसवीं सदी की शुरुआत में बीज के वट वृक्ष की कल्पना ही नहीं थी। पुण्यशालियों की भावभक्ति, दान पुण्य से, देव गुरु की असीम कृपा ने इसकी प्रगति में चार चाँद लगाए और १९०४ से १९९३ तक का इतिहास बेजोड़, अनुपम, अद्भुत, गौरवशाली एवं स्वर्णिम रहा है। एक छोटे से मंदिर से आज तिमंजला शिखरबद्ध संगमरमर का भव्य जिनालय शिल्पकला एवं स्थापत्य का बेजोड़ नमूना बना है। इसकी ८१ फीट की ऊँचाई के साथ ही साथ नूतन जिनालय में १२४ स्तंभ, २३ द्वार, ३४ कलामय गोखले, ५ झरोखे, ६२ तोरण, पहिली मंजिल में सुनाभ मेघनाद मंडप, गूढ मंडप, रंग मंडप परिक्रमा में १० दिग्पाल एवं मंडप में इन्द्र एवं देवाङ्गनाएँ स्थापित हैं। ___इस अमूल्य प्रगतिमय कार्य के साथ-साथ विशाल ज्ञानभंडार, हीरसूरि ज्ञान पुस्तकालय, आराधना भवन, नूतन आयंबिल शाला, धार्मिक पाठशाला भवन, हाईस्कूल की भव्य इमारत, भोजनशाला आदि अनेक संकुल निर्मित हुए हैं। 8 इस ९० वर्ष के अन्तराल में कई धार्मिक अनुष्ठान, उपधान, सैंकड़ों दीक्षाएँ, अनुपम तपश्चर्याएँ तथा एक से 8 एक बढ़कर सुविहित, ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी, महामुनि, आचार्य, उपाध्याय, श्रमण, श्रमणीवृन्द के ऐतिहासिक चातुर्मास होते रहे हैं, धर्मप्रभावनाएँ हुई हैं। 8 भारत भर में नूतन मंदिरों का निर्माण हो अथवा जीर्णोद्धार हो, श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मंदिर ट्रस्ट का सदैव ही योगदान रहा है। संवत् २०५० में जब से अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुआ है तब से लगाकर आज तक करोड़ों की धनराशि जीर्णोद्धार में तथा जीवदया-प्राणीमात्र के कल्याणकारी कार्यक्रमों में लग चुकी है और भी आगे लगेगी। इस तरह से देव द्रव्य का सदा ही अनवरत रूप से सदुपयोग करते आ रहे हैं। पुण्यशाली दानवीर श्रावकों ने हर एक धार्मिक कार्यक्रम में अपना सर्वोच्च अपरिमित योगदान देना एक सात्विक रुचि बना ली है। इस शताब्दी में जैन इतिहास में जो भी विशेष उपलब्धियाँ हुई हैं-उनमें से एक महान उपलब्धि है मद्रास शहर में श्री चन्द्रप्रभु नया जैन मंदिर की अंजनशलाका-प्राण प्रतिष्ठा-महा महोत्सव-परम पूज्य आचार्य देवेश श्रीमद विजयकलापूर्ण सरीश्वरजी म. सा. के कर-कमलों द्वार सम्पन्न भव्यातिभव्य महोत्सव। इस प्रतिष्ठा 1 महोत्सव के दश दिवसीय कार्यक्रम में पूजा, जिनेन्द्र भक्ति-अंग रचना, चलचित्र रचनाएँ, रंगोली, साधर्मिक भक्ति स्वरूप साधर्मिक वात्सल्य के अनूठे कार्यक्रमा करीब-करीब भारत के सभी प्रान्तों से एवं विदेशों से पधारे हुए भाविकों ने मुक्त-कंठ से इसकी सराहनीय प्रशंसा की है। लाखों लोग जिन भक्ति-पूजा दर्शन वंदन में जुड़ गए हैं। देव, गुरु, धर्म के नेता सर्व मुनि भगवंतों से, आचार्यों से, साध्वीगणों से यह विशेष अनुनय-विनय है कि वे हमारे मद्रास संघ पर आशीर्वाद रूपी पुष्पों की वर्षा बरसाते रहें। श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मंदिर ट्रस्ट, xx1848181818XII T9NTEXX. मद्रास "श्री जैन आराधना भवन" ३५१, मिन्ट स्ट्रीट, मद्रास - ६०० ०७९ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ननननननननननननOG GOOG GOOGGननननननननननन दक्षिण भारत के मद्रास शहर की पुण्य भूमि पर निर्मित भव्य श्री चन्द्रप्रभ जैन नया मन्दिर प्रतिष्ठा : वि.सं. 2050 महा सुद 13. ALOOOOOOOOOOOOOGGOOOOOOO GOOGO ननननन G G G GE SOOOOOOOOOODooooooooooooooooooooooooooooooooooooooooo SARANAMAJD MET XOOOL OCOOOOOOOOOOOOXCX 1000000000000 MBA Emma PADMAADI HINDRAMA ALLED UNPUR OSEXSEXORaaleeTYeteyTY DOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO नाता MMA AVN NAVAUNNANANANANAAANNN 142, मिन्ट स्ट्रीट, साहुकार पेठ, मद्रास-६०० 079. Ph. : 582628 चनaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa