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यार सहि शान मनिषकुमार
मेघ मुनि का हृदय नाग गया। उसका रोम-रोमं पुलक उठा। भगवान के चरणों के पास आकर बोलने लगे
A/भन्ते ! मैं भटक गया था।
आपने मुझे जगा दिया। आप मेरे जीवन रथ के सारथी बने मेरी अज्ञानता और असहिष्णुता
पर क्षमा कीजिये।
भगवान महावीर ने आशीर्वाद का हाथ उठाया
(मेघ ! तुम जाग उठे।
(बहुत अच्छा हुआ। Aहाँ भन्ते ! इसी दया और तितिक्षा के प्रभाव से मैं आज पशु से मानव बना हूँ। अब मेरे मन के कण-कण
में दया-अनुकम्पा का अमर नाद गूंजता रहेगा। मैं | अपनी जीवन यात्रा में तितिक्षा और सहनशीलता के सहारे आगे बढ़ते रहने का दृढ़ संकल्प करता हूँ प्रभु !
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अब से मैं जीवन पर्यंत के लिये अभिग्रह करता हूँ कि आँख के सिवा मैं अपने शरीर के किसी
भी अंग का उपचार नहीं कराऊँगा। मेरा सर्वस्व आपके चरणों में समर्पित है।
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इस आत्म-मागृति के बाद मेघ मुनि ने भगवान महावीर के चरणों में अपने को पूर्ण रूप से समर्पित कर दिया। संयम-शील-श्रुत-तप की आराधना करते हुए बारह वर्ष तक उन्होंने विविध प्रकार के उत्कृष्ट तप और निर्मल संयम की आराधना करके विपुलाचल पर जाकर एक मास का अनशन किया। परम समाधि भावपूर्वक देह त्यागकर विजय महाविमान में महान ऋद्धि सम्पन्न देव बने।
समाप्त
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