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मेघकुमार एक बार फिर वन में आग लगी। चारों तरफ से जंगली जानवर भाग-भागकर उसी मण्डल में आकर घुसने लगे। मेरुप्रभ भी अपने हाथियों के परिवार के साथ वहीं आश्रय लेने आ गया। मण्डल जंगली पशुओं से खचाखच भर उठा। तिल रखने को भी खाली स्थान नहीं बचा।
अचानक मेरुप्रभ के पेट पर खुजली आयी, उसने एक पैर ऊँचा उठाया। नीचे जगह । खाली होते ही एक नन्हा खरगोश वहाँ आकर बैठ गया।
मरुप्रभ पाँव नीचे रखने लगा, नन्हा-सा खरगोश वहाँ बैठा दिखाई दिया। उसका हृदय करुणा से भर गया।
मेरे पाँव के नीचे दबकर इस
नन्हें-से खरगोश का तो कचूमर ही निकल जायेगा।
उसने अपना एक पैर ऊपर अधर में ही उठाये रखा।।
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