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मेघकुमार की आत्मकथा श्रेणिक उठकर अभय के साथ एकान्त मंत्रणाकक्ष में चले गये। अभय कुमार को रानी
महाराज ! आप चिन्ता न करें। यह कार्य धारिणी के दोहद की बात सुनाकर बोले
बुद्धि-बल से नहीं, किन्तु देव-बल से अभय ! मैंने तुम्हारे बुद्धि-बल पर भरोसा करके ही WIसफल होने वाला है। मैं प्रयत्न करता हूँ। रानी को इसकी पूर्ति का आश्वासन दे दिया है। अब )
इसे सम्पन्न करने की योजना बनाओ।
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दूसरे दिन अभयकुमार अपनी पौषधशाला में आया। स्वच्छ वस्त्र पहनकर अपने मित्र देव का आस्वान करने बैठा। तीन दिन के निर्जल तप व आराधना से प्रसन्न होकर मित्र देव आकाश में प्रकट हुआ। अभय ने देव को प्रणाम किया। और अपनी छोटी माता रानी धारिणी का दोहद बताकर कहा
"इसे पूर्ण करना अब आपके हाथ में है।
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मित्र ! निश्चिन्त रहो तुम ! अपने मित्रों और आराधकों की सहायता करना हमारा धर्म है।
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