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मेघकुमार सुमेरूप्रभ सहायता के लिए चिंघाड़ता, चीखता घायल सुमेरुप्रभ वेदना से कराहता, भूख-प्यास रहा, परन्तु उस खूखार हाथी के डर के कारण से छटपटाता, एक दिन मर गया। कोई भी दूसरे हाथी सहायता के लिए नहीं आये।
हूँ हा
बचाओ।
जवान होने पर अपने यूथ का राजा बन गया। सैकड़ों हाथी-हथिनियाँ उसके पीछे रहते थे।
वह हाथी मरकर गंगा नदी के दक्षिण तट पर विंध्यगिरि की तलहटी में पुनः हाथी बना। यहाँ पर उसके शरीर का रंग लाख जैसा लाल था। वह चार दाँत वाला हाथी, मेरुप्रभ नाम से विख्यात हुआ।
WiMAA
SHANKaala
TUEN
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