Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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रात को मेघ मुनि को नींद की झपकी लगती इतने में ही लघु-शंका के लिए बाहर आते-जाते मुनियों के पाँवों का स्पर्श होता तो उसकी नींद खुल जाती।
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मेघकुमार की आत्मकथा
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इस प्रकार रात भर नींद नहीं आने से मेघ मुनि का मन खिन्न और व्यग्र हो उठा। वे सोचने लगे
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कल तक मैं राजमहलों की कोमल शय्या पर आराम से सोता था। आज भूमि पर सोना और रात भर पाँवों की आहटों से जागना तथा ठोकरें खाना, कितना कठिन है यह मुनि जीवन । जिन्दगी भर इस प्रकार कष्ट सहना मुझसे तो नहीं होगा ।
मेघ मुनिका मन उद्विग्न हो गया। आते-जाते श्रमणों को देखकर उसके मन में विचार उठने लगे।
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कल तक राजभवन में सब लोग मेरा आदर करते थे, और आज मुझे पैरों की ठोकरें खानी पड़ रही हैं। मुझसे यह बर्दाश्त नहीं होता । श्रमण जीवन की यह कठिन चर्या मुझसे नहीं निभेगी । मैं तो प्रातःकाल होते ही भगवान से पूछकर वापस अपने घर चला जाऊँगा !
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रात भर मेघ मुनि अपनी शय्या पर बैठे-बैठे इसी प्रकार विकल्पों में उलझे रहे।
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