Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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पाँव ऊपर उठाये वह सोचता रहा
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जैसे मुझे अपनी जान प्यारी है, उसी प्रकार इस नन्हें-से जीव को भी अपनी जान प्यारी है।
मेघकुमार
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जान बचाने के लिये ही यह बेचारा मेरे मण्डल में आया है, तो इसकी रक्षा करना भी मेरा धर्म है।
हाथी के मन में करुणा का झरना फूट पड़ा। उसने ऊँचा उठा पैर वहीं थाम लिया।
लगभग ढाई दिन-रात के बाद वह वन-अग्नि शान्त हुई। जंगली जानवर वहाँ से निकलकर अपने-अपने स्थान पर जाने लगे। खरगोश भी वहाँ से हटा। मेरुप्रभ ने सोचा
अब जगह खाली हो गई, मैं अपना पाँव नीचे रखूँ।
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और उसने पाँव नीचा किया।
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