Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014 Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana Publisher: Diwakar PrakashanPage 30
________________ पाँव ऊपर उठाये वह सोचता रहा Ju W जैसे मुझे अपनी जान प्यारी है, उसी प्रकार इस नन्हें-से जीव को भी अपनी जान प्यारी है। मेघकुमार Jain Education International 119 जान बचाने के लिये ही यह बेचारा मेरे मण्डल में आया है, तो इसकी रक्षा करना भी मेरा धर्म है। हाथी के मन में करुणा का झरना फूट पड़ा। उसने ऊँचा उठा पैर वहीं थाम लिया। लगभग ढाई दिन-रात के बाद वह वन-अग्नि शान्त हुई। जंगली जानवर वहाँ से निकलकर अपने-अपने स्थान पर जाने लगे। खरगोश भी वहाँ से हटा। मेरुप्रभ ने सोचा अब जगह खाली हो गई, मैं अपना पाँव नीचे रखूँ। 0000 28 For Private & Personal Use Only और उसने पाँव नीचा किया। www.jainelibrary.org.Page Navigation
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