Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 9
________________ मेघकुमार की आत्मकथा कुछ नहीं स्वामी। बस यूँ ही मेरे मन में एक विचित्र असम्भव दोहद उत्पन्न हुआ है। मुँह से कहने में भी संकोच होता है। vo संकोच कैसा? क्या मुझे पराया समझती हो, या कायर? बताओ प्रिये तुम्हारे) मन में क्या दोहद उत्पन्न हुआ है। DEV-- CCEO महाराज! मन में एक उमंग उठी है। आकाश में बादल छाये हों, बिजलियाँ चमक रही हों। नन्हीं-नन्हीं फुहारें बरस रही हों। भूमि पर चारों तरफ हरियाली छाई हो, मोर पिउ-पिउ कर नाच रहे हों, ऐसे सुहावने मौसम में मैं श्वेत गजराज पर बैठू। पीछे छत्र तानकर आप विराजे हों, मेरी सवारी नगर के बीचों-बीच निकले। TITUTERIOR JulyRINDAVAILABILP कहते-कहते रानी ने शर्म से गर्दन नीची झुका ली। Erallation International For Privat 7 Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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