Book Title: Meghkumar ki Atmakatha Diwakar Chitrakatha 014
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ मेघकुमार की आत्मकथा | देव-लीला से अगले दिन देखते ही देखते आकाश में काले कजराले बादल छा गये। मेघगर्जना होने लगी। बिजलियाँ चमकने लगीं। रिमझिम फुहारें बरसने लगीं और सारी पृथ्वी जैसी हरियाली से नाच उठी। राजा श्रेणिक ने रानी धारिणी को कहा ZOYOYO देवी ! देखो तुम्हारे भाग्य से मौसम कितना सुहावना हो गया है? चलो, हम वन-विहार को चलते हैं? Jain Education International राजा श्रेणिक के आदेश से अभयकुमार ने वन-विहार की तैयारी पूर्ण कर दी। रानी धारिणी एक सफेद हाथी पर बैठी। पीछे राजा श्रेणिक हाथ में छत्र लेकर बैठ गये। उनकी सवारी नगर के बीचों-बीच से होकर गुजरी, नागरिक जनों ने उन्हें अभिवादन किया। महारानी धारि की जय ! महाराज की जय हो। 11 दोहद पूर्ण होने से रानी की उदासी दूर हो गई।" 10 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38