Book Title: Mat Mimansa Part 01
Author(s): Vijaykamalsuri, Labdhivijay
Publisher: Mahavir Jain Sabha

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Page 10
________________ यशोभिर्दिङ्नागान् व्यजयत मरालं च गतिना, सुभक्त्या तं बन्दे विजयकमलाचार्यमनिशम् ॥४॥ . हिमक्ष्माभृत्पुत्रीचरणनतभूतेशमुकुट-... पतद्गङ्गाधाराभरधवलबालेन्दुकररुक् । यशो विश्वे यस्य स्फुरति सततं तं श्रुतनिधि, सुभक्त्या वन्दे श्रीविजयकमलाचार्यमनिशम् ॥५॥ सुरालीसंकल्पस्फुरदमरधेनुस्तनयुग- . क्षरत्क्षीरश्रेणीरुचिरुचिरमाभाति वचनम् । यदीयं विश्वेऽस्मिन् सकलसुखसन्तानजननं, सुभक्त्या तं वन्दे विजयकमलाचार्यमनिशम् ॥६॥ शिवास्वामिस्फूर्जन्मुकुटरजनीनाथकिरणवितानोद्योतिश्रीस्फटिकशिखरस्पर्द्धि सुतराम् । __ यशो यस्यात्यन्तं धवलयति दिङ्नागनिकर, सुभक्त्या तं वन्दे विजयकमलाचार्यमनिशम् ॥७॥ नवीनादित्यांशुस्फुटबलभिदाशाक्षितिधरशिरःस्मेराशोकाङ्कुनिकरविभ्राजि जगति । पुनीते भव्यान् यच्चरणकमलद्वन्द्वममलं, सुभक्त्या तं वन्दे विजयकमलाचार्यमनिशम् ॥८॥ FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEFEFEEEEEEEEEEEEEEFFEEEEEE “ गुणश्रीपाथोधेरमरविजयस्याऽमलमतेः, क्रमाम्भोरुट्सेवाकरणचतुरो हृष्टहृदयः । हयाश्वाकेन्द्रद्वे(१९७७)चतुरविजयः पावनहृदोऽकृताऽऽचार्यस्य श्रीविजयकमलस्याऽष्टकमिदम् ॥ ९॥" . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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