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नही कर लेते।
हमारी इन्द्रिया चंचल क्यो है ? मन चचल है इसलिए इन्द्रिया चचल है। प्रश्न होगा-मन चचल क्यो है ? हमारी वृत्तियां चंचल है इसलिए मन चचल है। चचलता के हेतु इन्द्रिया और मन नही है, वे तो चचलता का भोग करती है। चंचलता के मूल हेतु वृत्तिया है। इसलिए जो व्यक्ति इन्द्रिय और मन की निर्मलता और उनकी चचलता के समापन का इच्छुक है उसके लिए यह प्राप्त होता है कि वह वृत्तियो के सशोधन का प्रयत्न करे।
वृत्तियां क्या है और उनके सशोधन की प्रक्रिया क्या है ? मनुष्य के जीवन-परिचालन मे जिसका सक्रिय योग होता है, उसे वृत्ति कहा जाता है। वर्तमान की क्रिया अतीत मे वृत्ति का रूप ले लेती है। मनुष्य मे
१. वुभुक्षा-खाने की इच्छा होती है। २. शरीर-धारण की इच्छा होती है। ३. ऐन्द्रियिक आसक्ति होती है। ४. श्वास लेने का सस्कार होता है। ५. वोलने की इच्छा होती है। ६. चिंतन का सस्कार होता है।
ये जीवन-धारण की मौलिक वृत्तिया है। वृत्ति के पोषक तत्त्व दो है-राग और द्वेष । रागात्मक भावना के द्वारा मनुष्य प्रियता या अनुकूलता की अनुभूति करता है और द्वेषात्मक भावना के द्वारा मनुष्य अप्रियता या प्रतिकूलता की अनुभूति करता है। रागात्मक भाव माया और लोभ के रूप मे प्रकट होता है। द्वेषात्मक भाव क्रोध और अभिमान के रूप मे प्रकट होता है। ये वृत्तियो को अपने रग मे रंग देते है इसलिए इन्हे कपाय कहा गया है। इन भावो को पुष्टि देने वाले कुछ सहायक भाव है। जैसे - हास्य, रति-अरति, भय, शोक, घृणा, काम-वासना।
इन काषायिक भावो के द्वारा मनुष्य मे अज्ञान, सशय, विपर्यय, मोह, आवरण आदि घटित होते है। महर्षि पतजलि ने प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति को वृत्ति माना है। __ वृत्तियो का शोधन तपोयोग से होता है। पानी, हवा और धूप के अभाव मे अंकुरित बीज भी मुरझा जाता है। इसी प्रकार पोषक सामग्री
मनोनुशासनम् / ७