Book Title: Manonushasanam
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 171
________________ (ख) संकल्प उच्चारणपूर्वक होना चाहिए। कम से कम बीस-तीस वार सकल्प को जोर से बोलकर दोहराना चाहिए। (ग) संकल्प मे तन्मय होने से वह शरीर-व्यापी हो जाता है। (घ) सोने से पहले और जागते ही-ये दो समय संकल्प के लिए अधिक फलप्रद होते है। सोते समय जो विचार किया जाता है, उसे सूक्ष्म (अवचेतन) मन शीघ्रता से ग्रहण करता है। इसलिए नीद मे भी उसका कार्य चलता रहता है। हम जिन विचारो का सकल्प लेकर सोते है, उठते समय वे ही विचार मन मे मिलते है। सोकर उठने के बाद इन्द्रियां और मन शान्त रहते है। उस समय का संस्कार मन पर दृढ़ व गहरा पडता है। इन दो समयो के अतिरिक्त जब भी समय मिले संकल्प को दोहराते रहना चाहिए, जिससे संकल्प-सिद्धि में सहयोग मिलता रहे और अन्य प्रकार के विचार भी न घुसने पाएं। (च) सकल्प को दोहराते समय लयबद्धता होनी चाहिए। दोहराने का स्वर जितना लम्बा होगा, उतनी ही स्थिरता वढेगी। जितना कम समय होगा, उतनी ही स्थिरता कम होगी। भोजन के तत्काल वाद ऐसा नही करना चाहिए। (छ) सकल्प मे सातत्य होना चाहिए। पाच दिन संकल्प किया, फिर दो दिन छोड दिया, फिर सात दिन किया, फिर छोड दिया-यह साधना का क्रम नही है। साधना का अभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए। सकल्प तालयुक्त श्वास के साथ करना चाहिए। जो संकल्प श्वास के साथ भीतर जाता है, वह तीन मिनट मे शरीर के प्रत्येक अवयव पर अपना प्रभाव छोड़ जाता है। पूरक के समय वह सकल्प करना चाहिए कि सकल्प्य वस्तु भीतर जा रही है। कुम्भक काल मे यह सकल्प होना चाहिए कि संकल्प्य वस्तु समचे शरीर में व्याप्त हो गई है। रेचनकाल मे मन को खाली रखना चाहिए। सकल्प की पद्धति से जिस स्वभाव को बदलना चाहे, उसे बदलने में हम सफल हो सकते है। नये स्वभाव का निर्माण कर सकते हैं। अभ्यास मनोनुशासनम् / १४६

Loading...

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237