Book Title: Manonushasanam
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 204
________________ ४. वर्तमान क्षण की प्रेक्षा ___अतीत बीत जाता है, भविष्य अनागत होता है, जीवित क्षण वर्तमान होता है। भगवान् महावीर ने कहा-'खण जाणाहि पडिए । साधक तुम क्षण को जानो।' अतीत के सस्कारो की स्मृति से भविष्य की कल्पनाए और वासनाएं होती है। वर्तमान क्षण का अनुभव करने वाला स्मृति और कल्पना दोनो से बच जाता है। स्मृति और कल्पना राग-द्वेषयुक्त चित्त का निर्माण करती है। जो वर्तमान क्षण का अनुभव करता है, वह सहज ही राग-द्वेष से वच जाता है। यह राग-द्वेषशून्य वर्तमान क्षण ही सवर है। राग-द्वेषशून्य वर्तमान क्षण को जीने वाला अतीत मे अर्जित कर्म-सस्कार के बध का निरोध करता है। इस प्रकार वर्तमान क्षण मे जीने वाला अतीत का प्रतिक्रमण, वर्तमान का सवरण और भविष्य का प्रत्याख्यान करता है। तथागत अतीत और भविष्य के अर्थ को नही देखते। कल्पना को छोडने वाला महर्पि वर्तमान का अनुपश्यी हो, कर्मशरीर का शोषण कर उसे क्षीण कर डालता है। भगवान् महावीर ने कहा-'इस क्षण को जानो।३ वर्तमान को जानना और वर्तमान मे जीना ही भाव-क्रिया है। यात्रिक जीवन जीना, काल्पनिक जीवन जीना और कल्पना-लोक मे उडान भरना द्रव्य क्रिया है। वह चित्त का विक्षेप है और साधना का विघ्न है। भाव-क्रिया स्वय साधना और स्वय ध्यान है। हम चलते है और चलते समय हमारी चेतना जागृत रहती है, 'हम चल रहे है'-इसकी स्मृति रहती है-यह गति की भावक्रिया है। इसका सूत्र है कि साधक चलते समय पांचो इन्द्रियो के विषयो पर मन को केन्द्रित न करे। आखो से कुछ दिखाई देता है, शब्द कानो से टकराते है, गध के परमाणु आते है, ठडी या गरम हवा शरीर को छूती है-इन सवके साथ मन को न जोडे। रस की स्मृति न करे। १ आयारो, २/२४ । २ आयारो, ३/६० णातीतमट्ठ ण य आगमिस्स, अट्ठ नियच्छति तहागया उ। विधूतकप्पे एयाणुपस्सी, णिज्झोसइत्ता खवगे महेसी॥ ३ सूयगडो १/२/७३ डणमेव खण वियणाणि आ। १८२ / मनोनुशासनम्

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