Book Title: Manonushasanam
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 217
________________ चाहते है और लम्बी प्रक्रिया आपको जटिल प्रतीत होती है, आप सहज सरल ध्यान करने के पक्ष में हैं तो वह भी सम्भव हो सकता है। जिस किसी भी आसन में बैठकर ध्यान कर सकते है । केवल इतना ही ध्यान रखना होगा कि शरीर सीधा रहे तथा रीढ की हड्डी सीधी रहे। फिर आप ध्यान की पद्धति को चुन ले, जो नीचे बतायी जा रही है 9. नथुनो से श्वास भरकर उसे मस्तिष्क मे ले जाइए। वहा कुछ समय के लिए उसे धारण कीजिए । सहज ही सकल्प-विकल्प विलीन हो जाएंगे। इससे धातु-क्षयजनित बीमारिया भी नष्ट होती हैं। २ जीभ को तालु मे लगाकर बैठ जाइए। सहज ही मन शान्त हो जाएगा । किन्तु इसका अभ्यास ठडे समय में ही किया जाना चाहिए । ३ एकान्त मे शिथिलीकरणपूर्वक लेटकर अपने दाये पैर के अंगूठे पर दृष्टि स्थिर कीजिए । मन को वही एकाग्र कीजिए | यह चित्त लय का सहज उपाय है। ४. स्थिर और सीधे बैठकर, लेटकर या खडे होकर मन को दोनो नथुनो के नीचे ले जाइए। वहा श्वास जो भीतर जा रहा है और भीतर से वापस बाहर आ रहा है, उसे देखिए । श्वास के इस गम और निर्गम पर मन को लगाने से वह शान्त हो जाता है । इनके अतिरिक्त चित्त लय की कुछ पद्धतियां ४/२६ की व्याख्या मे निर्दिष्ट है। उनमे से भी आप अपनी सुविधा के अनुसार चुनाव कर सकते है । : ३ : भेदज्ञान का अभ्यास यदि मन को एकाग्र करना कठिन हो, ध्यान आपको सभव नहीं लग रहा हो तो आप सबसे पहले भेद - ज्ञान का अभ्यास कीजिए । आत्मा और शरीर का भेदज्ञान पुष्ट होने पर मन की चचलता सहज ही विलीन हो जाती है। आप स्थिर और शान्त होकर इस प्रकार की भावना कीजिए मनोनुशासनम् / १६!

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