Book Title: Manonushasanam
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 194
________________ T क्रम को देख ।' जो क्रोध को देखता है, वह मान को देखता है। जो मान को देखता है, वह माया को देखता है। जो माया को देखता है, वह लोभ को देखता है | जो लोभ को देखता है, वह प्रिय को देखता है। जो प्रिय को देखता है, वह अप्रिय को देखता है। जो अप्रिय को देखता है, वह मोह को देखता है । जो मोह को देखता है, वह गर्भ को देखता है। जो गर्भ को देखता है, वह जन्म को देखता है। जो जन्म को देखता है, वह मृत्यु को देखता है । जो मृत्यु को देखता है, वह नरक और तिर्यञ्च को देखता है। जो नरक और तिर्यञ्च को देखता है, वह दुःख को देखता है। जो दुख को देखता है वह क्रोध से लेकर दुःख पर्यन्त होने वाले इस चक्रव्यूह को तोड़ देता है। " 'यह निरावरण द्रष्टा का दर्शन है।" ३ 'तू देख यह लोक चारो ओर प्रकंपित हो रहा है ।" ऊपर स्रोत है, नीचे स्रोत है और मध्य मे स्रोत है। उन्हे तुम 'देखो। ' 'महान् साधक अकर्म (ध्यानस्थ - मन, वचन और शरीर की क्रिया का निरोध कर ) होकर जानता - देखता है । 'जो देखता है उसके लिए कोई उपदेश नही होता । ७ जो देखता है उसके कोई उपाधि होती है या नही होती ? उत्तर मिला- नही होती । उक्त कुछ सूत्रो से देखने और जानने की बात समझ मे आ सकती है । देखना साधक का सबसे बडा सूत्र है । जब हम देखते है तब सोचते नहीं है और जब हम सोचते है तव देखते नहीं है । विचारो का जो सिलसिला चलता है, उसे रोकने का सबसे पहला और सबसे अतिम साधन है - देखना | कल्पना के चक्रव्यूह को तोडने का सबसे सशक्त उपाय है - देखना | आप स्थिर होकर अनिमेष चक्षु से किसी वस्तु को देखे, विचार १ आयारो, ३ / २६ जाति च वुड्ढि च इहज्ज । पासे । २ आयारो, ३/८३, ८४ । ३ आयारो, ३/८५ एय पासगस्स दसण उवरयसत्यस्स पलियतकरस्स । लोय च पास विप्फदमाण । ४. आयारो, ४ / ३७ ५. आयारो, ५/११८ . ६ आयारो, ५/१२० एस मह अकम्मा जाणति पासति । ७ आयारो, २/१८५ उद्देसो पासगस्स णत्थि । ८ आयारो, ३/८७ किमत्थि उवाहि पासगस्स ण विज्जइ ? णत्थि । १७२ / मनोनुशासनम् •

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