________________
का उपाय है।
१ ८ प्रतिसलीनता भी इन्द्रिय- शुद्धि का उपाय है ।
१६. प्राणायाम, समतालश्वास, दीर्घश्वास और कार्योत्सर्ग के द्वारा श्वासोच्छ्वास की शुद्धि होती है ।
२० कायोत्सर्ग आदि आसनो, मूलवन्ध,
उड्डियानबन्ध, जालन्धर-बन्ध, व्यायाम और प्राणायाम के द्वारा काय की शुद्धि होती है ।
२१. निर्लेपता के द्वारा भी काय की शुद्धि होती है।
२२ ऊ, अर्ह आदि शब्दो के लम्वे उच्चारण से वाणी की शुद्धि होती है।
२३. सत्यपरकता से भी वाणी की शुद्धि होती है
२४ दृढ सकल्प करने व एक लक्ष्य पर स्थिर होने से मन की शुद्धि होती है।
योग
प्रश्न- क्या जैन साहित्य मे 'योग' शब्द का व्यवहार हुआ है ? उत्तर - जैन साहित्य मे 'योग' शब्द का व्यवहार अनेक रूपो मे हुआ है - अध्यात्मयोग, भावनायोग, सवरयोग, ध्यानयोग आदि । सूत्रकृताग जैसे प्राचीन सूत्र मे 'योग' शब्द का व्यवहार हुआ है । जैन तत्त्वविद्या मे मन, वाणी और शरीर की प्रवृत्ति को भी योग कहा गया है। उसका प्रयोग वहुत प्रचलित है, इसलिए साधना के अर्थ मे सवर या प्रतिमा का प्रयोग अधिक प्रचलित है ।
जैन तत्त्व-विद्या के अनुसार हमारे जीवन के छह शक्ति-स्रोत (पर्याप्तिया) और दस शक्ति केन्द्र (प्राण) है ।
१ आहार पर्याप्ति
२ शरीर पर्याप्ति
३ इन्द्रिय पर्याप्ति
४ श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति
५. भाषा पर्याप्ति ६. मन पर्याप्ति
१२ / मनोनुशासनम्