________________
चाहिए तथा आंखे खुली नही होनी चाहिए अन्यथा उनकी ज्योति नष्ट होने की संभावना रहती है। जालन्धरबन्ध का समय भी उड्डीयानबन्ध की भांति क्रमशः बढ़ता है। इसे साधारण आदमी को पाच-सात मिनट से ज्यादा नही बढ़ाना चाहिए। कुछ समय के लिए तीनो बन्ध एक साथ किए जा सकते हैं।
व्यायाम-हाथ, पैर या किसी भी अवयव को इच्छानुसार सिकोड़ना और फैलाना व्यायाम है।
निर्लेपता-विषयो की आसक्ति से शरीर की अशुद्धि होती है। विषय विकार के हेतु बनते है और विकार से कायिक दोष उत्पन्न होते है। अनासक्त (निर्लेप) व्यक्ति सहज भाव से कायिक दोषो से बच जाता है।
वाक्शुद्धि के उपाय
१. प्रलम्बनाद का अभ्यास २. सत्यपरक प्रयोग
वाक् मन परिष्कृत होकर ही प्रकट होती है। मन की सरलता होती है तब वाणी शुद्ध रहती है। मन की कुटिलता होने पर वह अशुद्ध हो जाती है। जिस साधक का मन सरल और पवित्र होता है, उसे वाक्-सिद्धि प्राप्त होती है। वह जो कहता है वही हो जाता है। वाणी मे यह शक्ति उसकी मानसिक पवित्रता से प्राप्त होती है।
ॐ, अर्ह, सोहम् आदि मत्राक्षरो का दीर्घ उच्चारण करने से मन वाणी के साथ जुड़ जाता है। मन का योग पाकर वाणी शक्तिशाली हो जाती है। वह वायुमण्डल में तीव्र कम्पन पैदा कर देती है। उससे अनिष्ट परमाणु दूर हो जाते है और इष्ट परमाणुओं का परिपार्श्व बन जाता है। __ दीर्घोच्चारण का अभ्यास दो मिनट से प्रारम्भ कर पन्द्रह मिनट तक बढ़ाना चाहिए। प्रति सप्ताह दो मिनट बढ़ाया जा सकता है। इस अभ्यास मे मन को समस्याओ से मुक्त और सरल रखना आवश्यक है। मनःशुद्धि के उपाय
१. दृढ़ सकल्प २. एकाग्रसन्निवेशन।
मनोनुशासनम् । २३