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यह अमूल्य रसायन है।
आचार्य भद्रवाहु ने कायोत्सर्ग के पाच फल बताए है१. दैहिक जडता की शुद्धि-श्लेष्म आदि के द्वारा देह मे जडता
आती है। कायोत्सर्ग से श्लेष्म आदि के दोष मिट जाते है।
अत: उनसे उत्पन्न होने वाली जडता भी नष्ट हो जाती है। २. बौद्धिक जडता की शुद्धि-कायोत्सर्ग मे चित्त एकाग्र होता है।
उससे बौद्धिक जडता नष्ट हो जाती है। ३. सुख-दुःख तितिक्षा-सुख-दुख सहने की शक्ति प्राप्त होती है। ४. शुद्ध भावना का अभ्यास होता है। ५ ध्यान की योग्यता प्राप्त होती है।
बैठकर किए जाने वाले आसन
गोदोहिका
विधि-घुटनो को ऊचा रखकर पजो के वल पर वैठ जाइए। दोनो हाथो को दोनो ऊरुओ (साथलों) पर टिका दीजिए। यह गाय को दोहने की मुद्रा है, इसलिए इसका नाम गोटोहिका है।
समय-दीर्घकाल।
फल-कामवाहिनी नाडियो पर दवाव पड़ने के कारण यह ब्रह्मचर्य मे सहायक होता है।
भगवान् महावीर इस आसन मे ध्यान किया करते थे।
उत्कटुकासन
विधि-दोनो पैरो को भूमि पर टिका दीजिए और दोनो पुतो को भूमि से न छुआते हुए जमीन पर बैठ जाइए।
समय-दीर्घकाल। फल-१. ब्रह्मचर्य मे सहायक। २. इसमे बैठे-बैठे पवनमुक्तासन की क्रिया हो जाती है, इसलिए
यह वातरोग मे भी लाभ पहुचाता है।
मनोनुशासनम् / ५६