________________
आकस्मिक कुम्भक के द्वारा सम्पन्न किया जा सकता है। आप पूरक और रेचन न करे । एक क्षण के लिए कुम्भक करे, वह भी आकस्मिक ढंग से । जैसे कोई बाधा आने पर चलता पैर अकस्मात् रुक जाता है, वैसे ही श्वास को हठात् बन्द कर लीजिए । क्षण-भर के लिए कुम्भक की मुद्रा मे रहिए । जिस क्षण कुम्भक होगा, उस क्षण मे सकल्प भी उसी प्रकार आकस्मिक ढंग से बन्द हो जाएगा। इस क्रिया को पाच-दस मिनट के बाद फिर दोहराए। इस प्रकार वार-बार अभ्यास करने से सकल्प का प्रवाह स्खलित हो जाता है | लम्बे समय की एकाग्रता के लिए यह क्रिया पृष्ठ भूमि का काम करती है ।
मानसिक निरोध का प्रवलतम हेतु ध्यान है । जब हम किसी एक विषय पर स्थिर रहने का अभ्यास करते है, तब मन की चचलता को एक स्थान मे रोकने का प्रयत्न करते है । उच्छृंखलता से विचरने वाली मन की चचलता का क्षेत्र सीमित हो जाता है, हजारो-हजारो विषयो से हटकर एक विषय मे सिमट जाता है, यह मन की चंचलता का गतिभग है । इसकी बार-बार पुनरावृत्ति होने पर वह गतिभग गतिनिरोध के रूप मे बदल जाता है । गौतम ने पूछा- 'भन्ते । एक आलम्बन पर मन का सन्निवेश करने से क्या लाभ होता है ? भगवान् महावीर ने कहा - ' गौतम । उससे चित्त का निरोध हो जाता है ।'
१
चित्त निरोध की प्रक्रिया गुरु के उपदेश से प्राप्त होती है और प्रयत्न की बहुलता से उसकी सिद्धि होती है। मन की स्थिरता जान लेने मात्र से नही होती। इसके लिए अनेक प्रयत्न करने होते है, लम्बे समय तक निरन्तर और श्रद्धा के साथ । कोई व्यक्ति मानसिक स्थिरता का अभ्यास करता है, उसमे पूरा समय नही लगाता अर्थात् तीन घंटे का समय नही लगाता, उसे पूर्ण सफलता प्राप्त नही होती। थोडा समय लगाने से कुछ लाभ अवश्य होता है किन्तु कोई भी आदमी स्वल्प प्रयत्न से शिखर तक नहीं पहुचता ।
जिसका चित्त अनवस्थित होता है-कभी स्थिरता का अभ्यास करता है, कभी नही करता, इस प्रकार कभी-कभी अभ्यास करने वाला भी सफलता से चचित रहता है | लम्बे समय तक और निरन्तर अभ्यास १ उत्तराध्ययन, २६ / २६
३८ / मनोनुशासनम्