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निर्मल रहती है। इस प्रकार स्वास्थ्य और निर्मलता-ये दोनो साधना के परिणाम है। ये परिणाम है किन्तु मूलभूत प्रयोजन नहीं है। साधना का मूलभूत प्रयोजन है-सत्य का साक्षात्कार ।
सत्य असीम है। हमारे इन्द्रिय, मन और बुद्धि की शक्ति सीमित है। हम ससीम साधनो के द्वारा असीम का साक्षात्कार नही कर सकते।
इन्द्रिय, मन और बुद्धि के ज्ञान का मूल स्रोत आत्मा है। उसकी चैतन्य शक्ति असीम है। उसे अनावृत कर हम सत्य का साक्षात्कार कर सकते है। ध्यान का स्थिर अभ्यास किए बिना हम आत्मा की चैतन्य शक्ति का प्रत्यक्ष उपयोग नही कर सकते। इन्द्रिय, मन और बुद्धि का सम्बन्ध स्थूल जगत् या स्थूल सत्य से होता है। उनमे सूक्ष्म सत्य तक पहुचने की क्षमता नही है। ध्यान के द्वारा हम चेतना के सूक्ष्म स्तर तक चले जाते है। सूक्ष्म चैतन्य के द्वारा सूक्ष्म सत्य प्रत्यक्ष हो जाता है। इस प्रकार अतीन्द्रिय ज्ञान का विकास साधना का मुख्य प्रयोजन है। ___ अतीन्द्रिय ज्ञान व आत्म-साक्षात्कार में कोई भेद नही है। इसे आत्मोदय भी कहा जा सकता है।
२८ / मनोनुशासनम्