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११. मनो वाक्-काय-आनापान-इन्द्रिय-आहाराणां निरोधो योगः ॥ १२ संवरो गुप्तिनिरोधो निवृत्त इति पर्यायाः॥ १३ शोधनं च ॥ १४. समितिः सत्यप्रवृत्तिर्विशुद्धि इति पर्यायाः ।। १५. पूर्व शोधनं ततो निरोधः ।। १६ हित-मित-सात्त्विकाहरणं आहारशुद्धिः ॥ १७. स्वविषयान् प्रति सम्यग्योग इन्द्रियशुद्धिः ।। १८. प्रतिसंलीनता च ॥ १६. प्राणायाम-समदीर्घश्वास-कायोत्सर्गे आनापानशुद्धिः॥ २०. कायोत्सर्गाद्यासन-वन्ध-व्यायाम-प्राणायामैः कायशुद्धिः ॥ २१. निस्संगत्वेन च ॥ २२. प्रलम्वनादाभ्यासेन वाक्शुद्धिः ॥ २३ सत्यपरत्वेन च ॥ २४. दृढ़संकल्पैकाग्रसन्निवेशनाभ्यां मनःशुद्धिः ॥ ११ बन्धन-मुक्ति के लिए मन, वाणी, काय, आनापान, इन्द्रिय और
आहार के निरोध को योग कहा जाता है। १२. संवर, गुप्ति, निरोध और निवृत्ति-ये उनके पर्यायवाची नाम
१३. मन, वाणी, काय, आनापान, इन्द्रिय और आहार की शुद्धि को
भी योग कहा जाता है। १४. समिति, सत्प्रवृत्ति और विशुद्धि-ये उनके पर्यायवाची नाम है। १५. पहले मन आदि का शोधन होता है, फिर निरोध। १६ हितकर भोजन करना, मितभोजन करना-ठूस-ठूसकर न
खाना, मित द्रव्य खाना-बहुत वस्तुएं एक साथ न खाना, मित समय मे खाना-समूचे दिन खाते ही न रहना, मिर्चमसाले आदि उत्तेजक वस्तुएं न खाना-ये आहारशुद्धि के
उपाय है। १७ स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र का अपने-अपने विपयो
(स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्द) के प्रति जो सम्यग योग होता है- निर्विकार और शान्तप्रवृत्ति होती है, वह इन्द्रिय-शुद्धि
मनोनुशासनम् । ११