Book Title: Man Sthirikaran Prakaranam
Author(s): Vairagyarativijay, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra
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रूपया खर्च कर जिनमन्दिरों का निर्माण किया, अनेक जिनमन्दिरों का जीर्णोद्धार हुआ। बडे उत्सवपूर्वक प्रतिष्ठाएँ हुई। दुष्काल पीडित लाखों को सहायता मिली। अनेक महातीर्थों के संघ निकाले गये। इन्होंने अपने जीवनकाल में राजे महाराजे, ठाकुर, जागीरदारों, साहूकारों को उपदेश दे कर उन्हें जैनधर्म का अनुरागी बनाया। एवं कुरीतियों, अन्धविश्वासों एवं सामाजिक विरोध को दूर करने का प्रयत्न किया।
शिष्य परिवार
कहा जाता है कि इनके १६ प्रधान एवं विद्वान् शिष्य थे। उनमें प्रसिद्ध साहित्यकार एवं प्रखर मंत्रशास्त्री आचार्य भुवनतुंगसूरि भी थे। इन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना कर साहित्यश्री की समृद्धि की थी । अन्य शिष्यों में चन्द्रप्रभसूरि भी एक विद्वान् शिष्य थे। जिन्होंने चन्द्रप्रभस्वामिचरित्र की रचना की थी । कवि धर्ममुनि ने सं.१२६६ में जम्बूस्वामिचरित्र की रचना की । इस प्रकार महेन्द्रसिंहसूरि के कई प्रखर अध्ययनशील विद्वान् शिष्य हो गये जिन्होंने साहित्य जगत की अपूर्व सेवा की ।
महान साहित्यकार
संस्कृत एवं प्राकृत साहित्य के विकास में जिन विद्वानों ने अपनी महत्वपूर्ण कृतियों से असाधारण योगदान किया है उनमें आचार्य श्रीमहेन्द्रसूरिजी नाम सविशेष है। इन्होंने कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखकर साहित्य की अनुपम सेवा की है। अपने गुरु विद्वान् धर्माचार्य श्रीधर्मघोषसूरि के सान्निध्य में रहकर इन्होंने उच्चकोटि की विद्वत्ता प्राप्त की। आपके द्वारा रचित कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथ ये हैं
(१) शतपदी प्रश्नोत्तरपद्धति - आचार्यश्रीधर्मघोषसूरिजी द्वारा रचित शतपदी में कुछ विशेष प्रश्नों को मिलाकर कुछ क्रमपद्धति में परिवर्तन कर वि.सं. १२९४ में सुश्लिष्ट संस्कृत में शतपदी प्रश्नोत्तरपद्धति की रचना की। अंचलगच्छ की समाचारी को जानने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
(२) अष्टोत्तरी तीर्थमाला- आपने अपने जीवन काल में अनेक तीर्थों की यात्रा की। अपनी यात्रा के अनुभव के निचोड के रूप में अष्टोत्तरी तीर्थमाला नामक १११ श्लोक प्रमाण प्राकृत में ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की। यह तीर्थमाला अष्टोत्तरीस्तव के नाम से प्रकाशित भी हुआ है। इसी ग्रंथ पर आचार्य श्रीमहेन्द्रसिंहसूरि ने प्राकृत में ३००० श्लोकप्रमाण वृत्ति की भी रचना की।
(३-४)आतुरप्रत्याख्यान तथा चतुःशरण प्रकीर्णक अवचूरि- आचार्य श्रीमहेन्द्रसिंहसूरि ने आतुरप्रत्याख्यान तथा चतुःशरण पयन्ना पर अवचूरि की भी रचना की ।
(५) मनःस्थिरीकरण प्रकरण - आचार्य श्रीमहेन्द्रसिंहसूरि ने मनःस्थिरीकरण प्रकरण नामक ग्रन्थ की रचना १२८४ में की। यह मूलग्रंथ १७० प्राकृत गाथा में रचा गया है। उस पर आपने २३०० श्लोक प्रमाण स्वोपज्ञ वृत्ति की रचना की । यह ग्रंथ पाठकों के हाथ में है ।
(६) विचारसप्ततिका - इस ग्रंथ में बारह विचारों पर चर्चा की है। इस ग्रंथ की ८१ गाथा है। इस पर तपागच्छीय आ.श्रीदेवसूरिजी के शिष्य मुनि श्री विमलकुशल ने वृत्ति की रचना की है ( वि.सं. १६५२ ) । (७) आयुः सारसंग्रह - आचार्य श्रीमहेन्द्रसिंहसूरिजी ने वि. सं. १२८४ में प्राकृत में आयुः सारसंग्रह नामक ग्रंथ की रचना की है। यह लघुकृति ८२ गाथा प्रमाण है। इस में सभी जीवस्थानों में जघन्य आदि आयुष्यकर्म का विचार प्रस्तुत है। संभवतः यह कृति मनः स्थिरीकरण प्रकरण की पूरक कृति है। इसके अतिरिक्