Book Title: Mahabharat Samhita Part 02
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

View full book text
Previous | Next

Page 680
________________ 7. 131. 105 ] महाभारते [7. 131. 133 साश्वसूतध्वजं वाहं भस्म कृत्वा महाप्रभा / कङ्कगृध्रमहाग्राहां नैकायुधझषाकुलाम् / विवेश वसुधां भित्त्वा साशनिर्भृशदारुणा॥ 105 रथक्षिप्तमहावां पताकारुचिरद्रुमाम् // 120 द्रौणेस्तत्कर्म दृष्ट्वा तु सर्वभूतान्यपूजयन् / शरमीनां महारौद्रां प्रासशक्त्युग्रडुण्डुभाम् / यदवप्लुत्य जग्राह घोरां शंकरनिर्मिताम् // 106 मज्जामांसमहापां कबन्धावर्जितोडुपाम् // 121 धृष्टद्युम्नरथं गत्वा भैमसेनिस्ततो नृप। केशशैवलकल्माषां भीरूणां कश्मलावहाम् / मुमोच निशितान्बाणान्पुनौणेमहोरसि // 107 नागेन्द्रहययोधानां शरीरव्ययसंभवाम् // 122 धृष्टद्युम्नोऽप्यसंभ्रान्तो मुमोचाशीविषोपमान / शोणितौघमहावेगां द्रौणिः प्रावर्तयन्नदीम् / सुवर्णपुङ्खान्विशिखान्द्रोणपुत्रस्य वक्षसि // 108 योधार्तरवनिर्घोषां क्षतजोर्मिसमाकुलाम् // 123 ततो मुमोच नाराचान्द्रौणिस्ताभ्यां सहस्रशः / प्रायादतिमहाघोरं यमक्षयमहोदधिम् / तावप्यग्निशिखाप्रख्यैर्जन्नतुस्तस्य मार्गणान् // 109 निहत्य राक्षसान्बाणैौणिहै डिम्बमार्दयत् // 124 अतितीव्रमभूयुद्धं तयोः पुरुषसिंहयोः / पुनरप्यतिसंक्रुद्धः सवृकोदरपार्षतान् / योधानां प्रीतिजननं द्रौणेश्च भरतर्षभ // 110 स नाराचगणैः पार्थान्द्रौणिर्विद्धा महाबलः // 125 ततो रथसहस्रेण द्विरदानां शतैत्रिभिः / जघान सुरथं नाम द्रुपदस्य सुतं विभुः / षभिर्वा जिसहस्रैश्च भीमस्तं देशमाव्रजत् // 111 पुनः श्रुतंजयं नाम सुरथस्यानुजं रणे // 126 ततो भीमात्मजं रक्षो धृष्टद्युम्नं च सानुगम् / बलानीकं जयानीकं जयाश्वं चाभिजन्निवान् / : अयोधयत धर्मात्मा द्रौणिरक्लिष्टकर्मकृत् // 112 श्रुताह्वयं च राजेन्द्र द्रौणिर्निन्ये यमक्षयम् // 127 तत्राद्भुततमं द्रौणिर्दर्शयामास विक्रमम् / त्रिभिश्चान्यैः शरैस्तीक्ष्णैः सुपुकै रुक्ममालिनम् / अशक्यं कर्तुमन्येन सर्वभूतेषु भारत // 113 श@जयं च बलिनं शकलोकं निनाय ह // 128 निमेषान्तरमात्रेण साश्वसूतरथद्विपाम् / जघान स पृषधं च चन्द्रदेवं च मानिनम् / अक्षौहिणी राक्षसानां शितैर्बाणैरशातयत् // 114 कुन्तिभोजसुतांश्चाजौ दशभिर्दश जग्निवान् // 129 मिषतो भीमसेनस्य हैडिम्बेः पार्षतस्य च / अश्वत्थामा सुसंक्रुद्धः संधायोग्रमजिह्मगम् / यमयोधर्मपुत्रस्य विजयस्याच्युतस्य च // 115 मुमोचाकर्णपूर्णेन धनुषा शरमुत्तमम् / प्रगाढमञ्जोगतिभिर्नाराचैरभिताडिताः / यमदण्डोपमं घोरमुद्दिश्याशु घटोत्कचम् // 130 निपेतुर्द्विरदा भूमौ द्विशृङ्गा इव पर्वताः // 116 स भित्त्वा हृदयं तस्य राक्षसस्य महाशरः / निकृत्तैर्हस्तिहस्तैश्च विचलद्भिरितस्ततः / विवेश वसुधां शीघ्रं सपुङ्खः पृथिवीपते // 131 रराज वसुधा कीर्णा विसर्पद्भिरिवोरगैः // 117 तं हतं पतितं ज्ञात्वा धृष्टद्युम्नो महारथः / क्षिप्तैः काञ्चनदण्डैश्च नृपच्छत्रैः क्षितिर्बभौ / द्रौणेः सकाशाद्राजेन्द्र अपनिन्ये स्थान्तरम् // 132 द्यौरिवोदितचन्द्रार्का ग्रहाकीर्णा युगक्षये // 118 तथा पराङ्मुखरथं सैन्यं यौधिष्ठिरं नृप / प्रवृद्धध्वजमण्डूकां भेरीविस्तीर्णकच्छपाम् / पराजित्य रणे वीरो द्रोणपुत्रो ननाद ह / छत्रहंसावलीजुष्टां फेनचामरमालिनीम् // 119 / पूजितः सर्वभूतैश्च तव पुत्रैश्च भारत // 133 - 1548 -

Loading...

Page Navigation
1 ... 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770