Book Title: Mahabharat Samhita Part 02
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
View full book text ________________ 7. 148. 62] महाभारते [7. 149. 26 गर्जतो राजशार्दूल शक्रप्रह्लादयोरिव // 62 व्यद्रावयच्छरवातैः पाण्डवानामनीकिनीम // 12 इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि तेन विद्राव्यमाणानि पाण्डुसैन्यानि मारिष / अष्टचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः // 148 // निशीथे विप्रकीर्यन्त वातनुन्ना घना इव // 13 घटोत्कचशरैर्नुन्ना तथैव कुरुवाहिनी / संजय उवाच। निशीथे प्राद्रवद्राजन्नुत्सृज्योल्काः सहस्रशः // 16 दृष्ट्वा घटोत्कचं राजन्सूतपुत्ररथं प्रति / अलंबलस्ततः क्रुद्धो भैमसेनि महामृधे / / प्रयान्तं त्वरया युक्तं जिघांसुं कर्णमाहवे // 1 आजन्ने निशितैर्बाणैस्तोत्रैरिव महाद्विपम् // 15 अब्रवीत्तव पुत्रस्तु दुःशासनमिदं वचः / तिलशस्तस्य तद्यानं सूतं सर्वायुधानि च / एतद्रक्षो रणे तूर्णं दृष्ट्वा कर्णस्य विक्रमम् // 2 घटोत्कचः प्रचिच्छेद प्राणदच्चातिदारुणम् // 16 अभियाति द्रुतं कर्णं तद्वारय महारथम् / ततः कर्ण शरबातैः कुरुनन्यान्संहस्रशः / . वृतः सैन्येन महता याहि यत्र महाबलः // 3 अलंबलं चाभ्यवर्षन्मेघो मेरुमिवाचलम् // 17 कर्णो वैकर्तनो युद्धे राक्षसेन युयुत्सति / ततः संचुक्षुभे सैन्यं कुरूणां राक्षसार्दितम् / रक्ष कर्णं रणे यत्तो वृतः सैन्येन मानद // 4 उपर्युपरि चान्योन्यं चतुरङ्गं ममर्द ह // 18 एतस्मिन्नन्तरे राजञ्जटासुरसुतो बली। . जटासुरिर्महाराज विरथो हतसारथिः / दुर्योधनमुपागम्य प्राह प्रहरतां वरः // 5 घटोत्कचं रणे क्रुद्धो मुष्टिनाभ्यहनदृढम् // 19 दुर्योधन तवामित्रान्प्रख्यातान्युद्धदुर्मदान् / मुष्टिनाभिहतस्तेन प्रचचाल घटोत्कचः / पाण्डवान्हन्तुमिच्छामि त्वयाज्ञप्तः सहानुगान् // 6 क्षितिकम्पे यथा शैलः सवृक्षगणगुल्मवान् // 20 जटासुरो मम पिता रक्षसामग्रणीः पुरा / ततः स परिघाभेन द्विटसंघन्नेन बाहुना / प्रयुज्य कर्म रक्षोन्नं क्षुद्रैः पार्थेनिपातितः / जटासुरिं भैमसेनिरवधीन्मुष्टिना भृशम् // 21 तस्यापचितिमिच्छामि त्वद्दिष्टो गन्तुमीश्वर // 7 तं प्रमथ्य ततः क्रुद्धस्तूर्णं हैडिम्बिराक्षिपत् / तमब्रवीत्ततो राजा प्रीयमाणः पुनः पुनः / दोामिन्द्रध्वजाभाभ्यां निष्पिपेष महीतले // 22 द्रोणकर्णादिभिः सार्धं पर्याप्तोऽहं द्विषद्वधे / अलंबलोऽपि विक्षिप्य समुत्क्षिप्य च राक्षसम् / त्वं तु गच्छ मयाज्ञप्तो जहि युद्धे घटोत्कचम् // 8 घटोत्कचं रणे रोषान्निष्पिपेष महीतले // 23 तथेत्युक्त्वा महाकायः समाहूय घटोत्कचम् / तयोः समभवद्युद्धं गर्जतोरतिकाययोः / जटासुरिभैंमसेनि नानाशस्त्रैरवाकिरत् // 9 घटोत्कचालंबलयोस्तुमुलं लोमहर्षणम् // 24 अलंबलं च कर्णं च कुरुसैन्यं च दुस्तरम् / विशेषयन्तावन्योन्यं मायाभिरतिमायिनौ / हैडिम्बः प्रममाथैको महावातोऽम्बुदानिव // 10 युयुधाते महावीर्याविन्द्रवैरोचनाविव // 25 ततो मायामयं दृष्ट्वा रथं तूर्णमलंबलः / पावकाम्बुनिधी भूत्वा पुनर्गरुडतक्षको। घटोत्कचं शरवातै नालिङ्गैः समार्दयत् // 11 पुनर्मेघमहावातौ पुनर्वत्रमहाचलौ / विद्धा च बहुभिर्बाणैर्भमसेनिमलंबलः / पुनः कुञ्जरशार्दूलो पुनः स्वर्भानुभास्करौ // 26 - 1580
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