Book Title: Mahabharat Samhita Part 02
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 701
________________ 7. 142. 38] द्रोणपर्व [7. 143. 21 अतितीव्रमभूयुद्धं नरराक्षसयोर्मधे। धनुश्चैव महाराज यतमानस्य संयुगे // 6 दष्ट्रणां प्रीतिजननं सर्वेषां भरतर्षभ // 38 स छिन्नधन्वा समरे विवर्मा च महारथः / तमर्जुनः शतेनैव पत्रिणामभ्यताडयत् / धनुरन्यन्महाराज जग्राहारिविदारणम् // 7 नवभिश्च शितैर्बाणैश्चिच्छेद ध्वजमुच्छ्रितम् // 39 ततस्तूर्णं चित्रसेनो नाकुलिं नवभिः शरैः / सारथिं च त्रिभिर्बाणैस्त्रिभिरेव त्रिवेणुकम् / / विव्याध समरे क्रुद्धो भरतानां महारथः // 8 धनुरेकेन चिच्छेद चतुर्भिश्चतुरो हयान् / शतानीकोऽथ संक्रुद्धश्चित्रसेनस्य मारिष। . विरथस्योद्यतं खड्गं शरेणास्य द्विधाच्छिनत् // 40 जघान चतुरो वाहान्सारथिं च नरोत्तमः // 9 अथैनं निशितैर्बाणैश्चतुर्भिर्भरतर्षभ। अवप्लुत्य रथात्तस्माच्चित्रसेनो महारथः। पार्थोऽर्दयद्राक्षसेन्द्रं स विद्धः प्राद्रवद्भयात् / / 41 नाकुलिं पञ्चविंशत्या शराणामार्दयद्बली // 10 तं विजित्यार्जुनस्तूर्णं द्रोणान्तिकमुपाययौ / तस्य तत्कुर्वतः कर्म नकुलस्य सुतो रणे / किरशरगणान्राजन्नरवारणवाजिषु / / 42 अर्धचन्द्रेण चिच्छेद चापं रत्नविभूषितम् // 11 / वध्यमाना महाराज पाण्डवेन यशस्विना / स छिन्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः / सैनिका न्यपतन्नु| वातनुन्ना इव द्रुमाः // 43 आरुरोह रथं तूर्णं हार्दिक्यस्य महात्मनः // 12 तेषु तूत्साद्यमानेषु फल्गुनेन महात्मना / द्रुपदं तु सहानीकं द्रोणप्रेप्सुं महारथम् / संपाद्रवलं सर्वं पुत्राणां ते विशां पते / / 44 .. वृषसेनोऽभ्ययात्तूर्णं किरशरशतैस्तदा // 13 इति श्रीमहाभारते द्रोणपर्वणि यज्ञसेनस्तु समरे कर्णपुत्रं महारथम् / द्विचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः // 142 // षष्ट्या शराणां विव्याध बाह्वोरुरसि चानघ // 14 143 वृषसेनस्तु संक्रुद्धो यज्ञसेनं रथे स्थितम् / संजय उवाच। बहुभिः सायकैस्तीक्ष्णैराजघान स्तनान्तरे // 15 शतानीकं शरैस्तूर्ण निर्दहन्तं चमू तव / तावुभौ शरनुन्नाङ्गो शरकण्टकिनौ रणे / चित्रसेनस्तव सुतो वारयामास भारत // 1 व्यभ्राजेतां महाराज श्वाविधौ शललैरिव // 16 नाकुलिश्चित्रसेनं तु नाराचेनार्दयभृशम् / रुक्मपुङ्खैरजिह्माप्रैः शरैश्छिन्नतनुच्छदौ / . स च तं प्रतिविव्याध दशभिर्निशितैः शरैः॥२ रुधिरौघपरिक्लिन्नौ व्यभ्राजेतां महामृधे // 17 चित्रसेनो महाराज शतानीकं पुनयुधि / तपनीयनिभौ चित्रौ कल्पवृक्षाविवाद्भुतौ / / नवभिर्निशितैर्बाणैराजघान स्तनान्तरे // 3 किंशुकाविव चोत्फुल्लौ व्यकाशेतां रणाजिरे // 18 नाकुलिस्तस्य विशिखैर्वर्म संनतपर्वभिः / / वृषसेनस्ततो राजन्नवभिद्रुपदं शरैः / गात्रात्संच्यावयामास तदद्भुतमिवाभवत् // 4 विद्धा विव्याध सप्तत्या पुनश्चान्यैत्रिभिः शरैः // सोऽपेतवर्मा पुत्रस्ते विरराज भृशं नृप / ततः शरसहस्राणि विमुश्चन्विबभौ तदा / उत्सृज्य काले राजेन्द्र निर्मोकमिव पन्नगः // 5 कर्णपुत्रो महाराज वर्षमाण इवाम्बुदः // 20 ततोऽस्य निशितैर्बाणैर्ध्वजं चिच्छेद नाकुलिः। ततस्तु द्रुपदानीकं शरैश्छिन्नतनुच्छदम् / म.भा. 197 -1569

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