Book Title: Mahabharat Samhita Part 02
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
View full book text ________________ 7. 142. 10] महाभारते [7. 142. 37 सहदेवो महाराज दृष्ट्वा कर्णं व्यवस्थितम् / सूतं ध्वजं च समरे रथोपस्थादपातयत् // 24 रथचक्रं ततो गृह्य मुमोचाधिरथिं प्रति // 10 हताश्वात्तु रथात्तूर्णमवप्लुत्य महारथः / तमापतन्तं सहसा कालचक्रमिवोंद्यतम् / तस्थौ विस्फारयंश्चापं विमुम्बंश्च शिताशरान् // 25 शरैरनेकसाहौरच्छिनत्सूतनन्दनः / / 11 शतानीकस्ततो दृष्ट्वा भ्रातरं हतवाहनम् / तस्मिंस्तु वितथे चक्रे कृते तेन महात्मना / रथेनाभ्यपतत्तूर्णं सर्वलोकस्य पश्यतः // 26 . वार्यमाणश्च विशिखैः सहदेवो रणं जहौ // 12 शतानीकमथायान्तं मद्रराजो महामृधे / तमभिद्रुत्य राधेयो मुहूर्ताद्भरतर्षभ / विशिखैर्बहुभिर्विद्धा ततो निन्ये यमक्षयम् // 27 अब्रवीत्प्रहसन्वाक्यं सहदेवं विशां पते // 13 तस्मिंस्तु निहते वीरे विराटो रथसत्तमः / मा युध्यस्व रणे वीर विशिष्टै रथिभिः सह। आरुरोह रथं तूर्णं तमेव ध्वजमालिनम् // 28 सदृशैयुध्य माद्रेय वचो मे मा विशङ्किथाः // 14 / ततो विस्फार्य नयने क्रोधाद्विगुणविक्रमः / . . अथैनं धनुषोऽग्रेणं तुदन्भूयोऽब्रवीद्वचः / मद्रराजरथं तूर्णं छादयामास पत्रिभिः // 29 एषोऽर्जुनो रणे यत्तो युध्यते कुरुभिः सह। ततो मद्राधिपः क्रुद्धः शतेन नतपर्वणाम् / तत्र गच्छस्व माद्रेय गृहं वा यदि मन्यसे // 15 / आजघानोरसि दृढं विराटं वाहिनीपतिम् // 30 एवमुक्त्वा तु तं कर्णो रथेन रथिनां वरः। सोऽतिविद्धो महाराज रथोपस्थ उपाविशत् / प्रायात्पाञ्चालपाण्डूनां सैन्यानि प्रहसन्निव // 16 कश्मलं चाविशत्तीनं विराटो भरतर्षभ / वधप्राप्तं तु माद्रेयं नावधीत्समरेऽरिहा / सारथिस्तमपोवाह समरे शरविक्षतम् // 31 कुन्त्याः स्मृत्वा वचो राजन्सत्यसंधो महारथः // 17 ततः सा महती सेना प्राद्रवन्निशि भारत / सहदेवस्ततो राजन्विमनाः शरपीडितः। वध्यमाना शरशतैः शल्येनाहवशोभिना // 32 कर्णवाक्शल्यतप्तश्च जीवितान्निरविद्यत // 18 . तां दृष्ट्वा विद्रुतां सेनां वासुदेवधनंजयौ। आरुरोह रथं चापि पाञ्चाल्यस्य महात्मनः / प्रायातां तत्र राजेन्द्र यत्र शल्यो व्यवस्थितः // 33 जनमेजयस्य समरे त्वरायुक्तो महारथः // 19 तौ तु प्रत्युद्ययौ राजनराक्षसेन्द्रो ह्यलम्बुसः / विराटं सहसेनं तु द्रोणार्थे द्रुतमागतम् / अष्टचक्रसमायुक्तमास्थाय प्रवरं रथम् // 34 मद्रराजः शरौघेण छादयामास धन्विनम् // 20 तुरंगममुखैर्युक्तं पिशाचै|रदर्शनैः / तयोः समभवद्युद्धं समरे दृढधन्विनोः।। लोहितापताकं तं रक्तमाल्यविभूषितम् / यादृशं ह्यभवद्राजञ्जम्भवासवयोः पुरा // 21 कार्णायसमयं घोरमृक्षचर्मावृतं महत् // 35 मद्रराजो महाराज विराटं वाहिनीपतिम् / रौद्रेण चित्रपक्षेण विवृताक्षेण कूजता। आजन्ने त्वरितं तीक्ष्णैः शतेन नतपर्वणाम् // 22 ध्वजेनोच्छ्रिततुण्डेन गृध्रराजेन राजता // 36 प्रतिविव्याध तं राजा नवभिनिशितैः शरैः। स बभौ राक्षसो राजन्भिन्नाञ्जनचयोपमः / पुनश्चैव त्रिसप्तत्या भूयश्चैव शतेन ह // 23 रुरोधार्जुनमायान्तं प्रभञ्जनमिवाद्रिराट् / / तस्य मद्राधिपो हत्वा चतुरो रथवाजिनः / / किरन्बाणगणाराजशतशोऽर्जुनमूर्धनि // 37 -1568
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