Book Title: Mahabharat Samhita Part 02
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

View full book text
Previous | Next

Page 691
________________ 7. 137. 1] द्रोणपर्व / [7. 137. 29 137 ततो युधि महाराज सोमदत्तो महारथः। संजय उवाच / अर्धचन्द्रेण चिच्छेद माधवस्य महद्धनुः // 15. ' सोमदत्तं तु संप्रेक्ष्य विधुन्वानं महद्धनुः / अथैनं पञ्चविंशत्या सायकानां समार्पयत् / / सात्यकिः प्राह यन्तारं सोमदत्ताय मां वह // 1 . त्वरमाणस्त्वराकाले पुनश्च दशभिः शरैः // 16 : न ह्यहत्वा रणे शत्रु बाह्रीकं कौरवाधमम् / अथान्यद्धनुरादाय सात्यकिर्वेगवत्तरम् / ..; निवर्तिध्ये रणात्सूत सत्यमेतद्वचो मम // 2 पञ्चभिः सायकैस्तूर्णं सोमदत्तमविध्यत // 17 .. ततः संप्रेषयद्यन्ता सैन्धवांस्तान्महाजवान्। . ततोऽपरेण भल्लेन ध्वजं चिच्छेद काश्चनम् / .. तुरंगमाञ्शङ्खवर्णान्सर्वशब्दातिगारणे // 3 बाह्रीकस्य रणे राजन्सात्यकिः प्रहसन्निव // 18 तेऽवहन्युयुधानं तु मनोमारुतरंहसः / . सोमदत्तस्त्वसंभ्रान्तो दृष्ट्वा केतुं निपातितम् / यथेन्द्रं हरयो राजन्पुरा दैत्यवधोद्यतम् // 4 . शैनेयं पञ्चविंशत्या सायकानां समाचिनोत् // 19 तमापतन्तं संप्रेक्ष्य सात्वतं रभसं रणे। सात्वतोऽपि रणे क्रुद्धः सोमदत्तस्य धन्विनः। : सोमदत्तो महाबाहुरसंभ्रान्तोऽभ्यवर्तत // 5. धनुश्चिच्छेद समरे क्षुरप्रेण शितेन ह // 20 , विमुश्चञ्शरवर्षाणि पर्जन्य इव वृष्टिमान् / अथैनं रुक्मपुङ्खानां शतेन नतपर्वणाम् / / छादयामास शैनेयं जलदो भास्करं यथा // 6 आचिनोद्बहुधा राजन्भनदंष्ट्रमिव द्विपम् // 21 // असंभ्रान्तश्च समरे सात्यकिः कुरुपुंगवम् / अथान्यद्धनुरादाय सोमदत्तो महारथः। . . छादयामास बाणौधैः समन्ताद्भरतर्षभ // 7 सात्यकिं छादयामास शरवृष्ट्या महाबलः // 22 सोमदत्तस्तु तं षष्ट्या विव्याधोरसि माधवम् / सोमदत्तं तु संक्रुद्धो रणे विव्याध सात्यकिः / सात्यकिश्चापि तं राजन्नविध्यत्सायकैः शितैः॥ 8 सात्यकि चेषुजालेन सोमदत्तो अपीडयत् // 23. तावन्योन्यं शरैः कृत्तौ व्यराजेतां नरर्षभौ।' दशभिः सास्वतस्यार्थे भीमोऽहन्बाह्निकात्मजम् / सुपुष्पौ पुष्पसमये पुष्पिताविव किंशुकौ // 9 सोमदत्तोऽप्यसंभ्रान्तः शैनेयमवधीच्छरैः // 24 रुधिरोक्षितसर्वाङ्गौ कुरुवृष्णियशस्करौ। ततस्तु सात्वतस्यार्थे भैमसेनिर्नवं दृढम् / परस्परमवेक्षेतां दहन्ताविव लोचनैः // 10 मुमोच परिघं घोरं सोमदत्तस्य वक्षसि // 25. रथमण्डलमार्गेषु चरन्तावरिमर्दनौ / तमापतन्तं वेगेन परिघं घोरदर्शनम् / घोररूपौ हि तावास्तां वृष्टिमन्ताविवाम्बुदौ // 11 द्विधा चिच्छेद समरे प्रहसन्निव कौरवः // 26 शरसंभिन्नगात्रौ तौ सर्वतः शकलीकृतौ। स पपात द्विधा छिन्न आयसः परिघो महान् / श्वाविधाविव राजेन्द्र व्यदृश्येतां शरक्षतौ // 12 / महीधरस्येव महच्छिखरं वज्रदारितम् // 27 सुवर्णपु?रिषुभिराचितौ तौ व्यरोचताम् / ततस्तु सात्यकी राजन्सोमदत्तस्य संयुगे / खद्योतैरावृतौ राजन्प्रावृषीव वनस्पती॥ 13 धनुश्चिच्छेद भल्लेन हस्तावापं च पञ्चभिः // 28 संप्रदीपितसर्वाङ्गौ सायकैस्तौ महारथौ। चतुर्भिस्तु शरैस्तूर्णं चतुरस्तुरगोत्तमान् / अदृश्येतां रणे क्रुद्धावुल्काभिरिव कुञ्जरौ // 14 / समीपं प्रेषयामास प्रेतराजस्य भारत // 29 .. -1559 -

Loading...

Page Navigation
1 ... 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770