Book Title: Mahabharat Samhita Part 02
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute
View full book text ________________ 7. 131. 77] 'द्रोणपर्व [7. 131. 104 नानाशस्त्रधरैर्वीरै नाकवचभूषणैः / ततो घटोत्कचो बाणैर्दशभिर्गौतमीसुतम् / महाबलैर्भीमरवैः संरम्भोद्वृत्तलोचनैः // 77 जघानोरसि संक्रुद्धो विषाग्निप्रतिमैईलैः // 91 उपस्थितैस्ततो युद्धे राक्षसैयुद्धदुर्मदैः / स तैरभ्याहतो गाढं शरैर्भीमसुतेरितैः / विषण्णमभिसंप्रेक्ष्य पुत्रं ते द्रौणिरब्रवीत् // 78 चचाल रथमध्यस्थो वातोद्भूत इव द्रुमः // 92 तिष्ठ दुर्योधनाद्य त्वं न कार्यः संभ्रमस्त्वया। भूयश्वाञ्जलिकेनास्य मार्गणेन महाप्रभम् / सहै भिर्धातृभिर्वी रैः पार्थिवैश्वेन्द्रविक्रमैः // 79 द्रौणिहस्तस्थितं चापं चिच्छेदाशु घटोत्कचः // 93 निहनिष्याम्यमित्रांस्ते न तवास्ति पराजयः / / ततोऽन्यद्रौणिरादाय धनुर्भारसहं महत् / सत्यं ते प्रतिजानामि पर्याश्वासय वाहिनीम् // 80 ववर्ष विशिखांस्तीक्ष्णान्वारिधारा इवाम्बुदः // 94 दुर्योधन उवाच। ततः शारद्वतीपुत्रः प्रेषयामास भारत / न त्वेतदद्भुतं मन्ये यत्ते महदिदं मनः। सुवर्णपुङ्खाशत्रुघ्नान्खचरान्खचरान्प्रति // 95 अस्मासु च परा भक्तिस्तव गौतमिनन्दन // 81 तद्बाणैरर्दितं यूथं रक्षसां पीनवक्षसाम् / संजय उवाच।। सिंहैरिव बभौ मत्तं गजानामाकुलं कुलम् // 96 अश्वत्थामानमुक्त्वैवं ततः सौबलमब्रवीत् / विधम्य राक्षसान्बाणैः साश्वसूतरथान्विभुः। : वृतः शतसहस्रेण रथानां रणशोभिनाम् // 82 ददाह भगवान्वह्निर्भूतानीव युगक्षये // 97 षष्ट्या गजसहस्रैश्च प्रयाहि त्वं धनंजयम् / स दग्ध्वाक्षौहिणी बाणैनैर्ऋतान्रुरुचे भृशम् / कर्णश्च वृषसेनश्च कृपो नीलस्तथैव च // 83 पुरेव त्रिपुरं दग्ध्वा दिवि देवो महेश्वरः // 98 उदीच्याः कृतवर्मा च पुरुमित्रः श्रुतार्पणः। युगान्ते सर्वभूतानि दग्ध्वेव वसुरुल्बणः / दुःशासनो निकुम्भश्च कुण्डभेदी उरुक्रमः // 84 रराज जयतां श्रेष्ठो द्रोणपुत्रस्तवाहितान् // 99 पुरंजयो दृढरथः पताकी हेमपङ्कजः / तेषु राजसहस्रेषु पाण्डवेयेषु भारत। शल्यारुणीन्द्रसेनाश्च संजयो विजयो जयः // 85 नैनं निरीक्षितुं कश्चिच्छक्नोति द्रौणिमाहवे / कमलाक्षः पुरुः क्राथी जयवर्मा सुदर्शनः / ऋते घटोत्कचाद्वीराद्राक्षसेन्द्रान्महाबलात् // 100 एते त्वामनुयास्यन्ति पत्तीनामयुतानि षट् // 86 स पुनर्भरतश्रेष्ठ क्रोधाद्रक्तान्तलोचनः / . जहि भीमं यमौ चोभी धर्मराजं च मातुल / तलं तलेन संहत्य संदश्य दशनच्छदम् / असुरानिव देवेन्द्रो जयाशा मे त्वयि स्थिता // 87 स्वसूतमब्रवीत्क्रुद्धो द्रोणपुत्राय मां वह // 101 दारितान्द्रौणिना बाणेश्रृंश विक्षतविग्रहान् / स ययौ घोररूपेण तेन जैत्रपताकिना / जहि मातुल कौन्तेयानसुरानिव पावकिः // 88 / द्वैरथं द्रोणपुत्रेण पुनरप्यरिसूदनः // 102 एवमुक्तो ययौ शीघ्रं पुत्रेण तव सौबलः / स चिक्षेप ततः क्रुद्धो द्रोणपुत्राय राक्षसः / पिप्रीषुस्ते सुतान्राजन्दिधक्षुश्चैव पाण्डवान् // 89 / अष्टचक्रां महारौद्रामशनीं रुद्रनिर्मिताम् // 103 अथ प्रववृते युद्धं द्रौणिराक्षसयोर्मुचे। . तामवप्लुत्य जग्राह द्रौणिय॑स्य रथे धनुः / विभावया सुतुमुलं शक्रप्रहादयोरिव // 90 चिक्षेप चैनां तस्यैव स्यन्दनात्सोऽवपुप्लुवे // 104 - 1547 -
Loading... Page Navigation 1 ... 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770