Book Title: Mahabharat Samhita Part 02
Author(s): Bhandarkar Oriental Research Institute
Publisher: Bhandarkar Oriental Research Institute

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Page 678
________________ 7. 131. 48 ] महाभारते [7. 131.76 विरथस्योद्यतं हस्ताद्धेमबिन्दुभिराचितम्। तिष्ठ तिष्ठ न मे जीवन्द्रोणपुत्र गमिष्यसि / विशिखेन सुतीक्ष्णेन खड्गमस्य द्विधाकरोत् // 48 / युद्धश्रद्धामहं तेऽद्य विनेष्यामि रणाजिरे // 62 . गदा हेमाङ्गदा राजस्तूर्णं हैडिम्बसूनुना। इत्युक्त्वा रोषताम्राक्षो राक्षसः सुमहाबलः / भ्राम्योक्षिप्ता शरैः सापि द्रौणिनाभ्याहतापतत् // द्रौणिमभ्यद्रवत्क्रुद्धो गजेन्द्रमिव केसरी // 63 ततोऽन्तरिक्षमुत्पत्य कालमेघ इवोन्नदन् / रथाक्षमात्रैरिषुभिरभ्यवर्षझूटोत्कचः। ववर्षाञ्जनपर्वा स द्रुमवर्ष नभस्तलात् // 50 रथिनामृषभं द्रौणिं धाराभिरिव तोयदः // 64 ततो मायाधरं द्रौणिर्घटोत्कचसुतं दिवि / शरवृष्टिं शरैौणिरप्राप्तां तां व्यशातयत् / मार्गणैरभिविव्याध घनं सूर्य इवांशुभिः॥ 51 ततोऽन्तरिक्षे बाणानां संग्रामोऽन्य इवाभवत् // 65 सोऽवतीर्य पुनस्तस्थौ रथे हेमपरिष्कृते / अथास्त्रसंघर्षकृतैर्विस्फुलिङ्गैः समाबभौ। महीधर इवात्युच्चः श्रीमानञ्जनपर्वतः // 52 विभावरीमुखे व्योम खद्योतैरिव चित्रितम् // 66 तमयस्मयवर्माणं द्रौणिर्भीमात्मजात्मजम्।। निशाम्य निहतां मायां द्रौणिना रणमानिना। जघानाञ्जनपर्वाणं महेश्वर इवान्धकम् // 53 घटोत्कचस्ततो मायां ससर्जान्तर्हितः पुनः॥ 67 अथ दृष्ट्वा हतं पुत्रमश्वत्थाना महाबलम् / सोऽभवगिरिरत्युच्चः शिखरैस्तरुसंकटैः। . द्रौणेः सकाशमभ्येत्य रोषात्प्रचलिताङ्गदः // 54 शूलपासासिमुसलजलप्रस्रवणो महान् // 68 प्राह वाक्यमसंभ्रान्तो वीरं शारद्वतीसुतम् / तमञ्जनचयप्रख्यं द्रौणिदृष्ट्वा महीधरम् / दहन्तं पाण्डवानीकं वनमग्निमिवोद्धतम् / / 55 प्रपतद्भिश्च बहुभिः शस्त्रसंधैर्न चुक्षुभे // 69 तिष्ठ तिष्ठ न मे जीवन्द्रोणपुत्र गमिष्यसि। ततः स्मयन्निव द्रौणिर्वज्रमनमुदीरयत्। त्वामद्य निहनिष्यामि क्रौश्चमग्निसुतो यथा // 56 स तेनास्त्रेण शैलेन्द्रः क्षिप्तः क्षिप्रमनश्यत // 70 . अश्वत्थामोवाच। / ततः स तोयदो भूत्वा नीलः सेन्द्रायुधो दिवि / गच्छ वत्स सहान्यस्त्वं युध्यस्वामरविक्रम। अश्मवृष्टिभिरत्युग्रो द्रौणिमाच्छादयद्रणे // 71 न हि पुत्रेण हैडिम्बे पिता न्याय्यं प्रबाधितुम्॥ अथ संधाय वायव्यमस्त्रमस्त्रविदां वरः। कामं खळु न मे रोषो हैडिम्बे विद्यते त्वयि / व्यधमद्रोणतनयो नीलमेघं समुत्थितम् / / 72 किं तु रोषान्वितो जन्तुर्हन्यादात्मानमप्युत // 58 स मार्गणगणैौणिर्दिशः प्रच्छाद्य सर्वतः / संजय उवाच / शतं रथसहस्राणां जघान द्विपदां वरः // 73 श्रुत्वैतत्क्रोधताम्राक्षः पुत्रशोकसमन्वितः। स दृष्ट्वा पुनरायान्तं रथेनायतकामुकम् / अश्वत्थामानमायस्तो भैमसेनिरभाषत / 59 घटोत्कचमसंभ्रान्तं राक्षसैर्बहुभिर्वृतम् // 74 किमहं कातरो द्रौणे पृथग्जन इवाहवे / सिंहशार्दूलसदृशैर्मत्तद्विरदविक्रमैः। भीमात्खल्वहमुत्पन्नः कुरूणां विपुले कुले / / 60 / गजस्थैश्च रथस्थैश्च वाजिपृष्ठगतैरपि // 75 पाण्डवानामहं पुत्रः समरेष्वनिवर्तिनाम्। विवृतास्यशिरोग्रीवैहै डिम्बानुचरैः सह / रक्षसामधिराजोऽहं दशग्रीवसमो बले // 61 / पौलस्त्यैर्यातुधानैश्च तामसैश्चोग्रविक्रमैः // 76 - 1546 -

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