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गिरिनगर की चन्द्रगुफा प्राप्त लेख इस प्रकार है
(पं. १) .... स्तथा सुरगण [T] (क्षत्रा) णां प्रथ (म)...... (पं. २) ... चाष्टनस्य प्र [ पौ । त्रस्य राज्ञः क्ष | त्रप । स्य स्वामिजयदामपे । ।। त्रस्य राज्ञो
म [हा |...... (पं. ३) ......(चै) त्रशुक्लस्य दिवसे पंचमे ५ इ (ह) गिरिनगरे देवासुरनागय [क्ष | राक्षसे.....
(पं. ४) .....थ [पु। रमिव... केवलि । ज्ञा | न सं.....नां जरामरण [1]
अनुवाद .....तथा सुरगण.... क्षत्रियों में प्रथम..."चष्टन के प्रपौत्र के, राजा क्षत्रप स्वामी जयदाम के पौत्र के, राजा महा..... चैत्र शुक्ल की पंचमी को ५ यहाँ गिरिनगर में देवासुरनागयक्षराक्षस...."पुर के समान..... केवलिज्ञान सं..... के जरामरण......
इस लेख की राजवंशावलि आदि को समझने तथा लेख की गतिविधि का कुछ आभास देने के लिए हम चष्टन के प्रपौत्र, जयदाम के पौत्र रुद्रदाम के पुत्र स्वामी रुद्रसिंह के उस लेख को भी यहाँ उद्धृत कर देना उचित समझते हैं जो ठीक इसी लिपि में लिखा हुआ गुण्ड नामक स्थान से प्राप्त हुआ है, जो अपने रूप में पूरा है और जिसमें १०३वें वर्ष का स्पष्ट उल्लेख है
गुण्ड का शिलालेख (पं. १) सिद्धं । राजो महक्षत्र | प| स्य स्वामिचष्टनपौत्रस्य राज्ञो क्षत्रपस्य स्वामिजयदाम पौत्रस्य (पं. २) राज्ञो महक्षत्रपस्य स्वामिरुद्रदामपुत्रस्य राज्ञो क्षत्रपस्य स्वामिरुद्र(पं. ३) मीहस्य | व | र्षे |त्र | युत्तरशते १००३ वैशाखशुद्ध पंचमिघसतिथौ रो | हि | णि नक्ष(पं. ४) त्र महर्ते आभीरेण सेनापतिबापकस्य पत्रेण सेनापतिरुद्रभूतिना ग्रामेरसो(पं. ५)। प । द्रिये वा | पी] [ख | नि [ तो | बद्ध || पितश्च सर्वसत्त्वानां हित सुखार्थमिति।
__ अनुवाद सिद्धं । राजा महाक्षत्रप स्वामिचष्टन के प्रपौत्र, राजा क्षत्रपस्वामी जयदाम के पौत्र, राजा महाक्षत्रपस्वामी रुद्रदामके पुत्र, राजा क्षत्रपस्वामी रुद्रसिंह के वर्ष एक सौ तीन वैशाख शुद्ध पंचमी तिथि के रोहिणी नक्षत्र के मुहूर्त में आभीर सेनापति बापक के पुत्र सेनापति रुद्रभूति ने ग्राम रसोपद्रिय में वापी खुदवायी और बँधवायी सब जीवों के हित और सुख के लिए। इति।
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