Book Title: Mahabandho Part 2
Author(s): Bhutbali, Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 8
________________ गिरिनगर की चन्द्रगुफा राजाओं के अतिरिक्त 'केवली' या केवलज्ञान का उल्लेख है। इस पर से उसके जैनत्व में कोई संशय ही नहीं रहता। दुर्भाग्यतः इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण शिलालेख की दुर्दशा की बड़ी करुण कहानी है। उक्त गुफा के सम्मुख सन् १८७६ से पूर्व कुछ खुदाई हुई थी; उसी में वह शिलापट्ट हाथ लगा। निकालने में ही उसका एक हिस्सा टूट गया। फिर उसे उठाकर कोई शहर के भीतर राजमहल में ले गया और इसी समय उसके एक ओर के कोने को भारी क्षति पहुँची। जब बर्जेज साहब उसका फोटो लेने गये तब उसका पता लगना ही कठिन हो गया। अन्ततः वह महल के सामने गोल बरामदे में एक जगह पड़ा हुआ मिला। (Arch : Survey of Western India, Vol. II p. 140) फिर वह कुछ काल तक झूनागढ़ दरबार के छापाखाने में पड़ा रहा। तत्पश्चात् किसी और एक विपत्ति में पड़कर उसके दो टुकड़े हो गये और इस हालत में अब वह वहाँ के अजायबघर में सुरक्षित है। यह शिलापट्ट दो फुट लम्बा-चौड़ा और आठ इंच मोटा है। इसके एक पृष्ठभाग पर चार पंक्तियों का लेख है जो एक फुट, नौ इंच चौड़ी और छह इंच ऊँची जगह में है। एक-एक अक्षर लगभग आधा इंच बड़ा है। लेख को क्षति बहुत पहुँची है। बीच की दो पंक्तियाँ कुछ सुरक्षित हैं, किन्तु प्रथम और चतुर्थ पंक्ति का बहुत-सा भाग अस्पष्ट हो गया है और पढ़ने में नहीं आता। फिर एक ओर से जो शिलापट्ट टूट गया है, उसके साथ इन पंक्तियों का कितना हिस्सा खो गया; यह निश्चयतः नहीं कहा जा सकता। बुल्हर साहब के मत से दूसरी और चौथी पंक्तियाँ प्रायः पूरी हैं, केवल कोई दो अक्षरों की ही कमी है। किन्तु यह अनुमान ही है, निश्चित नहीं। उसी काल के अन्य शिलालेखों पर से निश्चयतः तो इतना ही कहा जा सकता है कि दूसरी और तीसरी पंक्तियों में जयदामन नरेश के पुत्र और पौत्र के नामोल्लेख तथा के वर्ष का उल्लेख, सम्भवतः अंकों और शब्दों में दोनों प्रकार से अवश्य रहा होगा। लेख की लिपि निश्चयतः क्षत्रप-काल की है। लेख टूटा हुआ होने से उसका प्रयोजन स्पष्टतः ज्ञात नहीं होता। किन्तु जितना कुछ लेख बचा है, उससे इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि उसका सम्बन्ध जैन धर्म की किसी घटना से है। उसमें 'देवासुरनागयक्षराक्षस', 'केवलिज्ञान', 'जरामरण' जैसे शब्द स्खलित पड़े हुए हैं, जिनसे अनुमान होता है कि उसमें किसी बड़े ज्ञानी और संयमी जैनमुनि के शरीरत्याग का उल्लेख रहा हो और उस अवसर पर देव, असुर, नाग, यक्ष और राक्षसों ने उत्सव मनाया हो। यह घटना 'गिरिनगर' (गिरनार) में ही हुई थी, इसका लेख में स्पष्ट उल्लेख है। घटना का काल चैत्र शुक्ल पंचमी दिया है, पर वर्ष का उल्लेख टूट । जिस राजा के राज्यकाल में यह घटना हुई थी उस राजा का नाम भी टूट गया है। पर इतना तो स्पष्ट है कि वह राजा क्षत्रप वंश के चष्टन का प्रपौत्र व जयदामन का पौत्र था। इस वंश के अन्य शिलालेखों व सिक्कों पर से क्षत्रप वंश की प्रस्तुतोपयोगी निम्न परम्परा का पता चल चुका है चष्टन जयदामन् रुद्रदामन् दामदजश्री रुद्रसिंह सत्यदामा जीवदामा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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