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धर्म सुधारक-महान् क्रान्तिकार
श्रीमान् लोकाशाह
का संक्षिप्त परिचय
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उन्नति और अवनति यह दो मुख्य अवस्थाएं अनादिकाल से चली आती हैं। जो जाति, धर्म या देश कभी उन्नत अवस्था में थे, वे समय के फेर से अवनत अवस्था को भी प्राप्त हुए, इसी प्रकार जो अस्ताचल में दिखाई देते थे, वे उन्नति के शिखर पर भी पहुँचे, एकसी अवस्था किसी की नहीं रहती? जैन इतिहास को जानने वाले अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी की उन्नत अवनत अवस्थाओं से भलीभांति परिचित हैं। तदनुसार जैन धर्म को भी कई बार अनुकूल और प्रतिकूल अवस्थाओं में रहना पड़ा। इतिहास साक्षी है कि भगवान् पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी के मध्यकाल में कितना परिवर्तन हो गया था, श्रमण संस्कृति में कितनी शिथिलता आ गई थी, धर्म के नाम पर कितना भयंकर अंधेर चलता था, नर हत्या में धर्म भी ऐसे ही निकृष्ट समय में माना जाता था ऐसी दुरावस्था में ही अहिंसा एवं त्याग के अवतार भगवान् महावीर स्वामी का प्रादुर्भाव हुआ और पाखण्ड एवं अन्ध विश्वास का नाश होकर यह वसुन्धरा एक बार और अमरापुरी से भी बाजी मारने लगी, मध्यलोक भी ऊर्ध्वलोक (स्वर्गधाम) बन गया, परमैश्वर्यशाली देवेन्द्र भी मध्यलोक में आकर अपने को भाग्यशाली समझने लगे। यह सब
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