Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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व्याकरणशास्त्र का मूल प्रोत
वेद समस्त ज्ञान-विज्ञान का अय भण्डार है । पौराणिक ऋषियों, महर्षियों से लेकर अधुनातन मनीषियों की यही सम्मति रही है। सर्वदेवमय मनु ने देद को सर्वज्ञानमय कहा है।' वेद अपौरय एवं सनातन सत्य होने के कारण लौकिक दोषों से परे है वहीं पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति में सर्वथा सहायक है । समस्त ज्ञान-विज्ञान का मूल स्रोत होने के कारण व्याकरण के अनेक शब्दों एवं पदों की व्युत्पत्तियाँ वैदिक अचाओं में भरी पड़ी हैं। “यन यज्ञमयजन्त देवा:-2 में यज्ञ शब्द को यज् धातु से सिद्ध किया गया है । “यज्ञः कस्मात् १ - प्रख्यातं यति कर्मेति नैसक्ताः । -3 "यजयाचयतिविच्छप्रच्छरक्षोनइ. 14 तथा "ये सहांसि सहसा सहन्ते 5 में स:धातो: असुन्-' प्रत्यय सिद्धि की गई है ।
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. 'व्याकरण' पद जिस धातु से बना है उसके वास्तविक अर्थ का प्रयोग भी यजुर्वेद में विद्यमान है ।' व्याकरणशास्त्र की सृष्टि का विवेचन यदि असम्भव नहीं तो दुष्प्राप्य अवश्य है किन्तु इतना स्पष्ट है वैदिक ध्वनि पाठों के सृष्टि से पूर्व ------ 1. "सर्वज्ञानमयो हि सः' । ।मनु 2/1/मेधातिथि की टीका। । 2. अग्वेद ।/164/50. 3. निरूक्त 3/1१. 4. अष्टाध्यायी 3/3/90 युधिष्ठिरमीमांसा भाग ।। 5. अग्वेद 6/66/90. 6. 2030.9/49/430 4/1941 इत्यसुन् 7. यजुर्वेद 19/17.